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४५८ खान अब्दुलगफ्फार खाँ नही कर सकते। हमने इरादा कर लिया है कि इस युद्ध को अन्त तक लड़ेंगे-उस दिन तक जबकि सयुक्त राष्ट्रो की विजित सेनाएँ बर्लिन, रोम और तोक्यो की सडको पर घूमती दिखाई देंगी। केन्द्रीय कैदखाने-हिटलर के वह कैदखाने जिन्हे उसने अपने नात्सीशासन के विरोधियो को कैद करने के लिए जर्मनी में कायम कर रखा है । योरप के साम्राज्यवादी प्रचारको के अनुसार वर्तमान युद्ध प्रारम्भ होने के समय ४० हजार व्यक्ति वहाँ कैद ये, और दो लाख से अधिक इन कैदखानों में पहले रह चुके हैं। सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट, डेमोक्रेट, कैथलिक तथा नात्सीवाद-विरोधी प्रोटेस्टेन्ट ईसाई, यहूदी, चेक, राजतन्त्रवादी वह नात्सी भी कैद किये गये हैं जो दल की नीति में अन्ध-विश्वास नहीं रखते । राजनीति से अलग रहनेवाले ऐसे जर्मन भी इनमे डाल दिये जाते हैं जो सभी नात्सी-कानूनो का पालन नहीं करते । कैद मे डालते वक्त न तो अदालत द्वारा अपराध सावित किया जाता है और न कैद की कोई मीयाद ही मुकरर है। बहुत से व्यक्ति सातसात वर्षों से जेलो मे पड़े सड़ रहे हैं। जेलखानो में कैदियों से ऐसी सख्त मशक्कत ली जाती है जिसे करने के वे अभ्यस्त नहीं होते। जेलखानों के जमादार उन्हे पीटते, उनके साथ दुर्व्यवहार करते और उनका अनिर्वचनीय प्रपीडन करते हैं । इन कैम्प जेलो मे हज़ारो, इन प्रतारणाओ के कारण, घुलघुल कर मर चुके हैं। यह कैदखाने नात्सी-शासन के अत्यन्त काले कारनामो मे हैं, लेकिन नात्सी इन्हीके द्वारा जर्मन जनता को प्रातसित रखकर अपना शासन चला रहे हैं । इनमे कई कैम्प जेल तो बहुत बदनाम हैं । अक्तूबर १६३६ में बरतानवी सरकार ने इन कैम्प जेलो के सम्बन्ध मे श्वेतपत्र प्रकाशित किया था । जर्मनी के यह नरक सन्सार मे कोई अपवाद नहीं हैं । प्रजातन्त्र की दुहाई देनेवाले, किन्तु कार्यतः साम्राज्यवादी राष्ट्रो के अधीन देशो मे भी बिना मुकदमा चलाये जेलो मे वर्षों डाले रखने के उदाहरण आज भी मौजूद हैं। खान अब्दुल गफ्फार खॉ-अक्टूबर १६४२ मे आपको गिरफ्तार कर लिया गया। सिन्ध और बगाल मे मुसलिम लीग के मन्त्रिमण्डल बन चुके हैं। अब लीगी और सरकारी क्षेत्रो मे सीमाप्रान्त मे भी लीगी-मिनिस्टरी कायम की चर्चा है। -