गांधी-लिनलिथगो-पत्र-व्यवहार ४५६ गांधी-लिनलिथगो-पत्र-व्यवहार - गांधीजी ने २६ जनवरी १६४३ को, भारत के वाइसराय लार्ड लिनलिथगो के नाम एक पत्र लिखा, जिसमे उन्होने ता० ६ फर्वरी से (ब्रत १० फरवरी से आरम्भ हुआ) २१ दिन तक उपवास रखने का मन्तव्य प्रकट किया । वाइसराय गांधीजी को केवल उपवास-काल के लिये जेल से मुक्त कर देने की व्यवस्था करना चाहते थे । इसे गान्धीजी ने स्वीकार नहीं किया । महल मे ही गांधीजी ने अपना ब्रत अम्भ किया। १० फ़रवरी १६४३ को लारड लिनलिथगो ने यह सब पत्र व्यवहार सभाचार-पत्रो मे प्रकाशित करा दिया जो गांधीजी के बीच अबतक हुआ था, जिसका सारमात्र इस प्रकार है:- ता० ६ अगस्त १६४२ को महात्मा गांधी बंबई मे गिरफ़्तार किये गये थे। इसके ४-५ दिन बाद अर्थात् १४ अगस्त १६४२ को गाधीजी ने वाइसराय को निम्नलिखित पत्र लिखा, जिसमे उन्होने कहा :- "सरकारी प्रस्ताव मे लिखा है कि "सपरिषद्- गवर्नर- जनरल को कुछ पिछले दिनो से कांग्रेस पा्टी द्वारा गैरक़ानूनी तथा हिंसात्मक कार्यों के लिए विगत भयानक तैयारियो का ज्ञान रहा है, जिनका उद्देश्य यातायात के साधनो तथा जनता के उपयोग की सेवात्रो में बाधा डालना, हड़तालो का सगठन तथा सरकारी कमचारियो को भड़काना और रक्षा के कार्यो एवं रगरूटो की भरती में बाधो डालना है ।" गाधीजी ने इस पर लिखा- अत्यन्त विरूप है । किसी भी अवस्था मे हिंसा की बात तो सोची भी नहीं गई थी। उन का्यों की व्याख्या का, जिम्हे अहिसात्मक आन्दोलन में शामिल किया जा सकता है, खीचातानी करके यह अ्थ लगाया गया है कि कांग्रेस हिंसात्मक कार्य के लिए तैयारी कर रही थी । " -"यह वास्तविकता का यदि गांधीजी का यह पत्र उसी समथ सरकार द्वारा प्रकाशित कर दिया जाता तो भारत में जो भयङ्कर विद्रोह हुआ और निर्दोष व्यक्तियो की जो हत्याएँ हुई', वह न होनी और जनता मे शान्ति स्थापित होजाती । २३ सितम्बर १६४२ मे गाधीजी ने दूसरा पत्र भारत-सरकार के ग्ह-विभाग के सेक्रेटरी के नाम लिखा। इस पत्र मे गांधीजी ने लिस्ा - "जो कुछ इसके विपरीत कहा गया है, उसके बावजूद में यह दावा
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