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४६० गांधी-लिनलिथगो-पत्र-व्यवहार करता हूँ कि काग्रेस की नीति अब भी स्पष्टतः अहिंसात्मक है। काग्रेसी नेतायो की एकदम गिरफ्तारियो ने जनता में रोष के भाव पैदा कर दिये और यहाँ तक कि उनमे यात्म-संयम मी न रहा । मे यह अनुभव करता हूँ कि जो सर्वनाश हुया है उसके लिए सरकार-काग्रेस नहीं-ज़िम्मेदार है । सरकार के लिए अब उचित मार्ग मुझे यही लगता है कि काग्रेसी नेताओं को रिहा कर दिया जाय और समस्त दमनकारी कानूनी और कार्यों को वापस ले लिया जाय और समझौते के उपाय और साधन सोचे जायें।" इसके बाद तीसरा पत्र गाधीजी ने १ जनवरी १६४३ को लार्ड लिनलिथगो के नाम लिखा। इस पत्र में गाधीजी ने अपने उपवास का सकेत-मात्र दिया और लिखा कि "समय अब निकट पहुंच रहा है और अब मेरा धैर्य भी समाप्ति पर है। सत्याग्रह के विधान में, जैसा कि मैं जानता हूँ, ऐसे अवसरो के लिये भी एक उपाय है । एक वाक्य मे वह उपाय है उपवास द्वारा शरीर का नाश । उस विधान मे यह भी है कि केवल अन्तिम उपाय के रूप में ही इसका प्रयोग किया जाय । यदि मै इसे टाल सका, तो मै इसका प्रयोग करने की इच्छा न करूंगा। इसके टालने का यही एक मार्ग है कि मुझे मेरी ग़लतियों अथवा गलती का विश्वास करा दिया जाय, मै इसके लिए काफी प्रायश्चित करूँगा । आप मुझे बुला सकते हैं या आप किसीको भेज सकते हैं जो आपके मन की बात जानता हो । और भी कितने ही उपाय है, यदि आपकी इच्छा हो तो।” इस पत्र के जवाब मे लार्ड लिनलिथगो ने १३ जनवरी को लिखा कि"इन विगत मासो मे मुझे प्रथम तो काग्रेस की उस नीति से घोर दुःख हुआ जो उसने गत अगस्त मे ग्रहण की, और दूसरे मुझे इससे दुःख पहुँचा कि इस नीति के कारण, जैसा कि इससे स्पष्ट था, सारे देश में हिंसा और अपराध हुए ( मै उस खतरे के बारे मे नहीं कहता जो भारत को बाहरी अाक्रमण से है)। इस हिंसा और अपराध को निदा मे एक शब्द भी आपने और कार्य-समिति ने नहीं कहा । "परन्तु यदि मै आपके पत्र को समझने में गलती नहीं करता तो उसका