पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/४६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गांधी-लिनलिथगो-पत्र-व्यवहार ६६। यह मतलब है कि जो कुछ घटनाएँ हुईं, उनके प्रकाश में आप अपना कदम पीछे को लौटाना चाहते हैं, और उस नीति से अपने को अलग करना। चाहते हैं जिसे विगत ग्रीष्म मे गकर किया गया था । तो अप सिर्फ मुझ्के सूचित कर दीजिए और मै इस मामले पर फिर से विचार करू गा । यदि मै पके उद्देश को समझने में विफल रहा हूँ तो विना किसी सकोच के तुरन्त ही कि, मैने ऐसा किस मामले मे क्रिया है, मूचित करेगे और मुझे अपने निश्चित सुझाव भी बतलायॅगे । " गाधीजी ने अपना चौथा पत्र १६ जनवरी १६४३ को वाइसराय के नाम लिखा। अपने इस पत्र मे गांधीजी ने लिखा- आपने मेरे पत्र का जो थनिकाला है, मुझे भय है कि, वह सही नहीं है। मैने आपके पत्र को पकी व्याख्या के प्रकाश में, पुनः पढ़ा, परन्तु मैं उसमे आपका तो नहीं, पासका | में त्रत रखना चाहता था और अब भी चाहता हूँ, यदि हमारे पत्र व्यवहार का कुछ प्रतिफ्ल न निकला । "यदि मै पने पत्र पर पकी व्याख्या को स्वीकार नही करता, तो आप मुझे अपना निश्चित प्रस्ताव प्रस्तुत करने की वाञ्छा करते हैं | ऐसा मै उसी सभय कर सकू गा जब कि प मुझे काग्रेस की काय-समिति के ब्रीच उपस्थित होने की व्यवस्था कर देंगे । इसी पत्र में गांधीजी ने रगे लिखा :- यदि आप यह न्ञाहते हैं कि मैं अा ही कार्य करू तो मुझे यह विश्वास करादे कि में गलती पर था, म उसके लिए ययेष्ट प्रायशिचित कर गा । श्गर प यह कहते हैं कि में कांग्रेस की ऋओर से कोई प्रस्ताव आपके समक्ष रखं ता यापको मुझे काग्रे कार्य- समिति के सदस्यां के वीच उपत्थित करना होगा। मेरा तो तके गापसे री ह कि पनतिरोध का अ्न्त करने का निश्चय करलें ।" लाई लिनलिथगो ने २५ जनवरी के गाथीजी के उपयंक्त पत्र के जवाव ३ें लिा :- पने दिना की जो तपुतः निन्दा की है , उसे पटरर मे वटुन म्रखन्न , श्रर में उस मइल्व से भी भलीभाँति पगिचित है जो यापने पिछले कषों में 'ग्रपने धर्म के उन ंग को दिया है | परन्तु एन महीनों में जो पटनाएँ इई है,