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४६२ गाँधी-लिनलिथगो-पत्र-व्यवहार वे तथा जो घटनाएँ अाज हारही है वह भी यह प्रमाणित करती है कि उसे अापके कुछ अनुयायियो ने स्वीकार नहीं किया है, योर रेवल वह सत्य कि आपने जिस आदर्श का प्रचार किया है, वे उसे अपनाने में सफल नहीं हुए। उन व्यक्तियो के सबधियो के लिए कोई जवाब नहीं जिन्होंने अपने जीवन से हाथ धोये हैं, और न उनके लिए जिनके सवधियो की सम्पत्ति को काग्रेस और उसके समर्थको की अोर से कीगई हिंसात्मक कार्यवाही के कारण नुकसान पहुंचा है। ___ "इसलिये अगर आप मुझे यह सूचित करने के लिए चिंतित हैं कि आप ६ अगस्त के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं और उससे अपना सबध-विच्छेद करते हैं, और उस नीति से भी, जिसका प्रस्ताव मे उल्लेख है, और अगर आप मुझे उचित अाश्वासन भविष्य के लिए भी दें, तो मै इस मामले पर आगे विचार करने के लिए तैयार हूँ, यह कहने की आवश्यकता नहीं है।" __ इस पत्र के जवाब मे गाधीजी ने २६ जनवरी १९४३ को पत्र लिखा और इसमे पुनः इस बात पर जोर दिया कि वह (वाइसराय) कृपाकर ८अगस्त १९४२ के काग्रेस प्रस्ताव मे कोई ऐसी बात तो बताये कि जिसे वह बुरा समझते हैं या जिसमे हिंसा की गध है । अतः अपने पत्रव्यवहार को विफल मान उन्होने ६ फरवरी से उपवास रखने की सूचना वाइसराय को देदो। ___ इस पत्र के जवाब मे ५ फर्वरी १६४३ को लार्ड लिनलिथगो ने एक पत्र गाधीजी के नाम लिखा । इस पत्र का प्राशय यह है कि ६ अगस्त के बाद भारत मे जो हिंसा-काण्ड, अग्नि-काण्ड तथा उपद्रव हुए उनके लिए गाधीजी, काग्रेस और उसके नेता जिम्मेदार हैं। अपने इस पत्र मे लार्ड लिनलिथगो ने लिखा : __"इसकी साक्ष्य है कि आप और आपके मित्र इस नीति की परिणति हिसा मे होने की अाशा रखते थे और आप उसे बरदाश्त करने के लिए तैयार थे और जो हिसा-काण्ड हुए, वे एक सुनिश्चित योजना के अग थे जो काग्रेस-नेताश्रो की गिरफ्तारी से बहुत पहले बनाई गई थी।" इसी पत्र मे उन्होने यह भी लिखा कि राजनीतिक कार्यों के लिए उपवास एक प्रकार से राजनीतिक हिसा ( Political blackmail ) है। गाधीजी ने ७ फर्वरी १६४३ को इस पत्र के उत्तर मे एक पत्र लाडे