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४६४ गांधीजी का इकीम दिन का व्रत अन्य सरकारी डाक्टरो तथा गावीजी के अन्य मित्रो और सबधियों को ही नही प्रत्युत् समस्त जनता को यह भय था कि गावीजी इस वयोवृद्ध अवस्था मे २१ दिन का उपवास कुशलता के साथ पूरा न कर सकेंगे। १६ फरी १६४३ से गाधीजी के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में दास्टरो को चिन्ता होने लगी और उनकी स्थिति दिन पर दिन अत्यन्त नाज़क होती गई। २१ फर्वरी को उनकी स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक होगई । उपर्युक्त ६ डाक्टरो ने २१ फर्वरी को अपनी स्वास्थ्य-पत्रिका मे गाधीजी के विषय में स्पष्ट लिखा____ "गाधीजी के लिए कल का दिन बहुत बुरा था। रात में केवल ४||घन्टे नीद उन्हे अाई। दिन में भी उनकी स्थिति खराब रही और बेहोशी की हालत बनी रही। हृदय की गति मन्द है और नाडी की गति भी धीमी है । वह बहुत ही थके हुए हैं । यहाँ तक कि पानी पीने मात्र से उन्हें बड़ी थकावट होजाती है। उन्होने सदैव की भॉति ४० ग्रोस जल के साथ दो ग्रोस नीबू का रस सेवन किया। १६ फरवरी तक उनका वजन १४ पोड कम हो चुका है। - और यदि उपवास अविलम्ब समाप्त न किया गया तो उनके जीवन की रक्षा न होसकेगी।" इस प्रकार ३-४ दिन उनकी हालत बड़ो नाजुक रही। समस्त देश मे चिन्ता व्याप्त होगई और उनकी मगल-कामनार्थ पूजास्थलो मे प्रार्थनाये और यज्ञहवनादि किये गये। इस बीच इंगलैण्ड, अमरीका, चीन और फारस के सभी दलों, वर्गो एव जातियो के विद्वान् नेताया तथा ग्राम जनता ने ब्रिटिश सरकार तथा वाइसराय से यह अपील की कि वह महात्मा गाधी की जीवन-रक्षा के हेतु उन्हे रिहा करदे । किन्तु ससार की इस अपील का ब्रिटिश सरकार पर कोई प्रभाव नही हुया और गाधीजी को अन्त तक रिहानही किया गया । परन्तु सरकार ने गाधीजी के सबधियो, मित्रो तथा अन्य लोक-नेतानो को उनसे व्रत-काल मे मिलने की आज्ञा दे दी थी। इससे गाधीजी को कुछ सान्त्वना तो मिली, परन्तु वह सरकार के हृदय मे जो परिवर्तन करना चाहते थे, वह लक्ष्य तत्काल पूरा नही होसका। अन्त मे ३ मार्च १६४३ को गाधीजी ने अपना व्रत सकुशल समाप्त । इस अवसर पर उनके पुत्र श्री देवदास गाधी, श्रीमती नायडू, डा० राय,