को जाती थी। सन् १८८६ तथा १८९३ में प्रथम आयरिश होमरूल मसविदे
(Bills) ब्रिटिश पार्लमेट में प्रस्तुत किये गये। यद्यपि वे स्वीकृत तो नहीं
हुए, तथापि तत्कालीन प्रधान मंत्री ग्लेड्स्टन ने आयरिश-समस्या को सुलझाने का प्रयत्न किया और उसमे उसे सफलता भी मिली। सरकार ने आयरलैण्ड के अँगरेज़ ज़मीदारो से ज़मीने ख़रीदकर आयरिश प्रजा को देदी। सन्
१९१२ मे होमरूल का नया मसविदा प्रस्तुत किया गया। अल्स्टर में इसका
प्रबल विरोध हुआ। अल्स्टर में स्वयसेवको की भर्ती की गई और दक्षिणी
आयरलैण्ड में होमरूल के लिए आयरिश स्वयसेवक भर्ती किये गये। इन
दोनो में संघर्ष शुरू हो जाने की पूर्ण संभावना थी। लार्ड-सभा में दो बार
होमरूल बिल अस्वीकार कर दिया गया। सन् १९१४ मे विश्व-युद्व आरम्भ
हो गया। इस बीच मे मसविदा (Bill) तो स्वीकार होगया, परन्तु उस पर
अमल करना स्थगित कर दिया गया।
उत्तरी तथा दक्षिणी आयरिश सैनिको ने ब्रिटेन की ओर से युद्ध मे
भाग लिया। परन्तु क्रान्तिकारी राष्ट्रीय आयरिश दल (जो शिन-फीन
(Sinn Fein) दल के नाम से प्रसिद्ध है) युद्ध से अलग रहा। ‘सिन-फीन'
का अर्थ है "स्वयं अपने लिए"। सन् १९१६ मे आयरिश-विद्रोह हो गया।
आयरिश स्वतंत्र प्रजातंत्र की घोषणा कर दी गई; किन्तु आयरिश नेता पकड़
लिये गये और उनका वध कर दिया गया। इस विद्रोह में आयरिश जनता
को जर्मनी का सहयोग भी प्राप्त था। जर्मनी से सर रौजर केसमेट यू-बोट में
बैठकर आयरलैण्ड मे विद्रोहियों को सहायता देने के लिये आये।
जब युद्ध समाप्त हो गया तब पुनः एक होमरूल बिल पेश किया गया
और स्वीकार कर लिया गया। उसके अनुसार उत्तरी तथा दक्षिणी आयरलैण्ड में दो पार्लमेट बनाने का निश्चय किया गया। क्रान्तिकारी राष्ट्रवादी
आयरिश जनता ने गृह-युद्ध आरम्भ कर दिया। उसने आयरलैण्ड में घोर
आतंक फैला दिया। ब्रिटेन ने क्रान्तिकारी आयरिश राष्ट्रवादियो के दमन
के लिये एक विशेष पुलिस भेजी जो ब्लैक-एन्ड-टैन्स के नाम से मशहूर है।
इस प्रकार शिन-फील दल और ब्लैक-एन्ड-टैन्स में बड़ा भयंकर युद्ध होता
रहा। राष्ट्रवादियों ने फौजो पर भी आक्रमण किया। ब्रिटिश पार्लमेट के