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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/४७१

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जमीयतुल-मोमिनीने-हिन्द सस्था, काग्रेस, के समकक्ष रही है । खिलाफ़त, सत्याग्रह, असहयोग, सविनय अविज्ञा, भाषण-स्वातन्त्र्य के लिये किये गये व्यक्तिगत सत्याग्रह आदि सभी श्रान्दोलनो में वह अग्रसर रही है । इसलाम के अनुसार स्वातन्त्र्य एक प्रकृतिप्रदत्त जन्मसिद्ध मानवीय अधिकार है, अतएव जमीअत का लक्ष्य भी भारत की पूर्ण स्वाधीनता है । पाकिस्तान के सम्बन्ध मे जमीअत का अधिकारपूर्ण निश्चय है कि यह योजना इसलाम की महती और पवित्र भावनायो के प्रतिकूल है । इसलाम मानव-समुदाय में 'पाक' और 'नापाक' की भेदसूचक पतित नीति को शिक्षा नहीं देता। वह मानव-मात्र को सर्वशक्तिमान जगन्नियन्ता (रब्युलयालमीन) की सर्वोत्तम सृष्टि मानता है। इसीलिये जमीयत-उल-उलमा प्रस्तावित पाकिस्तान का प्रबल प्रतिरोध करती है। लीग को वह मुसलमानो की एकमात्र प्रतिनिधिक संस्था नहीं मानती और न मि० जिन्ना को भारतीय मुसलमानो का प्रवक्ता स्वीकार करती है। समय-समय पर सभी अान्दोलनो में जमीयत के ग्राह्वान पर हज़ारो मुसलमानो ने देश की आज़ादी के लिये प्रर्याप्त मात्रा में त्याग किया है । काग्रेस के साथ जमीअत का भी दमन हुया है। 'अल जमीअत' नामक उर्दू दैनिक पत्र भी, इस संस्था के मुखपत्र के रूप में, प्रकाशित होता रहा है । जमीअत का मुख्य कार्यालय दिल्ली में है। जमीअतुल-मोमिनीने-हिन्द-भारतीय मुसलमानो के अन्तर्गत मोमिन जमाअत की अखिल भारतीय संस्था, जिसे मोमिन कान्फरेन्स भी कहा जाता है। मोमिन मुसलमान न मि० जिन्ना और न मुसलिम लीग को अपना रहनुमा मानते हैं । मोमिन लोग कपड़ा बनाने और बेचने का व्यवसाय करते हैं । पाकिस्तान की योजना को सभी दृष्टियो से यह लोग मुसलिम सम्प्रदाय के लिये विघातक समझते हैं । जमीअत-उल-मोमिनीन का सङ्गठन अखिल-भारतीय है । मोमिनों की संख्या भारतीय मुसलमानो मे चार साढ़े करोड़ है । फरवरी १६४२ मे जमीअत के प्रेसिडेन्ट, मौ० शेख मुहम्मद जहीरुद्दीन और वाइस-प्रेसिडेन्ट मि० अब्दुलकय्यूम अन्सारी, ने मि० चर्चिल, मि० ऐमरी और सर स्टैफर्ड क्रिप्स को समुद्री-तार द्वारा सूचित किया था-"भारत के ४|| करोड़ . . मुसलमानों की प्रतिनिधि-संस्था, अखिल-भारतीय मोमिन कान्फरेन्स, जिन्ना के नेतृत्व और मुसलिम लीग द्वारा समस्त भारतीय मुसलिम समु