पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/४७३

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जयप्रकाश नारायण सभा मे स्वराज्य पार्टी और विरोधी दल के नेता चुने गए। १९२५ में स्वराज्य- दल से त्यागपत्र दे दिया । १६२६ मे बम्बई नगर की ओर से असेम्बली के सदस्य चुने गये और वहाँ १९२७ से '३० तक नेशनलिस्ट पार्टी के उपनेता रहे । गोलमेज़ परिषद् में प्रतिनिधि बनकर गये । सब-योजना समिति के सदत्य थे। श्वेत-पत्र के सबंध मे मयुक्त पार्लमेंटरी समिति से सहयोग किया : समिति के समक्ष गवाही दी । सन् १९३१ में सर तेजबहादुर सम्र के सहयोग से काग्रेस तथा भारत सरकार में समझौता कराया। अक्टूबर १६३७ में भारत के सघीय- न्यायालय के न्यायाधीश पोर जनवरी १६३६ में प्रिवी-कौसिल की न्याय-समिति के न्यायाधीश नियुक्त किये गये । 'परवरी १६४३ में महात्मा गांधी के २१ दिन के व्रत के अवसर पर देश में जो सकट पैदा होगया था, उसके निवारण के लिए १६ और २० फरवरी को देहली में सर्वदल-सम्मेलन हुया, जिसमें भारत के सभी दलो के ३०० नेता उपस्थित थे। इसमें डा. जयकर ने गाधीजी की बिना शर्त रिहाई के लिए प्रस्ताव रखा, जिसे सम्मेलन ने स्वीकार किया। १० मार्च को बबई में नेता-सम्मेलन का फिर अधिवेशन हुआ, जिसमे निश्चय किया गया कि ५ सदस्यो का एक सभ्य-मण्डल वायसराय से मिलेगा। इनमें डा. जयकर भी एक सदस्य थे। __जयप्रकाश नारायण-१६ अक्टूबर १९४१ को, भारत सरकार के होम- डिपार्टमेट द्वारा प्रकाशित एक विज्ञप्ति के अनुसार, कुछ काग़ज़ात श्री जय- प्रकाश नारायण से उस समय बरामद किये गये जबकि वह उन्हे देवली जेल में, भेट के समय, अपनी पत्नी श्रीमती प्रभावती को देरहे थे। इन काग़जात में, विज्ञप्ति मे बतलाया गया था कि, श्री जयप्रकाश नारायण ने काग्रेस-समाज- वादी-दल की एक गुप्त-समिति बनाने के लिये लिखा, और यह कि यह गुप्त- समिति गैरकानूनी कार्य करे तथा 'पुराने तरीके से धन इकट्ठा करे । नवम्बर १६४२ में श्री जयप्रकाश नारायण, अपने चार साथियों सहित, हज़ारीबाग सेण्ट्रल जेल से फरार होगये, जहाँ देवली कैम्प-जेल से उन्हे तबदील किया गया था। जयप्रकाशजी की गिरफ्तारी के लिये ५०००) के पुरस्कार की । बिहार-सरकार ने की, और मार्च १९४३ के प्रथम सप्ताह मे इनाम में १ रकम बढ़ाकर १०,०००) करदी गई।