कुल १०५ आयरिश सदस्यो मे से ७३ शिन-फीन सदस्य डबलिन में एकत्रित
हुए और आयरिश राष्ट्रीय परिषद् (Dail Eireann) का अधिवेशन किया।
इस प्रकार अन्त मे, सन् १९२१ मे, ब्रिटिश-सरकार और आयरिश राष्ट्रीय
परिषद् के बीच सन्धि हो गई। सन् १९२२ मे आयरिश स्वतंत्र-राज्य-क़ानून
ब्रिटिश पार्लमेट ने स्वीकार किया। इसके अनुसार दक्षिणी आयरलैण्ड में
स्वतंत्र राज्य (Irish Free State) स्थापित हो गया। उत्तरी आयरलैण्ड
(अल्स्टर) ब्रिटेन के अधिकार में रह गया। उसे मर्यादित स्वराज्य दे
दिया गया।
क्रान्तिकारी आयरिश प्रजातत्रवादियों के नेता डी वेलरा ने सन्धि को ठुकरा दिया और आयरिश स्वतंत्र राज्य की सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया। फिर गृह-युद्ध आरम्भ हो गया और सन् १९२३ तक चलता रहा। अन्त में सरकार की विजय हुई।
सन् १९३२ मे आयरिश स्वतंत्र राज्य की पार्लमेट मे फियन्ना-फेल दल का बहुमत हो गया और इस दल का नेता डी वेलरा प्रधान-मंत्री नियुक्त किया गया। शासन-विधान (१९२२) में कई बड़े परिवर्तन किये गये। राजभक्ति की शपथ लेना बन्द कर दिया गया। गवर्नर-जनरल के अधिकार कम कर दिये गये। सन् १९३७ में नया शासन-विधान तैयार किया गया। यह विधान पूर्ण स्वाधीनता के आधार पर बनाया गया। १ जुलाई १९३७ को ५४ प्रतिशत के बहुमत से यह विधान स्वतंत्र राज्य की जनता ने स्वीकार किया। २९ दिसम्बर सन् १९३७ से इसके अनुसार शासन होने लगा।
विधान में आयरलैण्ड को पूर्ण स्वाधीन, प्रभुत्व-युक्त-प्रजातत्र, कैथलिक राज्य घोषित किया गया है। आयरलैण्ड की राष्ट्रीय पताका हरे, सफेद और नारंगी रंग की निर्धारित की गई है। यूनियन जैक (ब्रिटिश पताका) का बहिष्कार किया गया है तथा क्राउन (सम्राट्-सत्ता) का उल्लेख भी नहीं किया गया है। अब गवर्नर जनरल का पद नहीं है। राष्ट्रपति का चुनाव होता है और वही राज्य का प्रमुख शासक है।
राष्ट्रपति ७ साल के लिए चुना जाता है। वह पार्लमेट के अधिवेशन
आमंत्रित करता है तथा उसे भग करता है। वह कानूनों पर स्वीकृति देता