शिया पोलिटिकल कान्फरेन्स ४७७
दुर्भाग्यवशात् भारत ऐसे मतभेदोन् का केन्द्र रहा है, और उसकी दासता और
परवशता से लाभ उठाने वाली शक्तियो ने इस मतभेद की जड़ो में और भी
निरन्तर पानी देकर इसे सरसब्ज़ किया है । शियो को शिकायत है कि सुन्नियों
ने उनपर बहुत अत्याचार किये हैं - इसी कारण ईरान से भागकर वह भारत
आये - किन्तु, यहान् भी भारत के सुन्नी मुसलमानों द्वारा उन्हें सामाजिक
प्रतारणा का प्रहार सहन करना पड़ रहा है । सामाजिक प्रगति के किसी भी
आयोजन में सुखी और शिया मिलकर आजतक नहीं बैठ सके । इसी कारण
आल-इडिया मुसलिम लीग की स्थापना के दूसरे वर्ष, १९०७ मे, भारत के शिया
मुसलमानो ने इस सस्था की स्थापना की । आरम्भ में यह सस्था शुद्ध सामा-
जिक क्षेत्र में सेवा करती रही, किन्तु परिवर्तित युग के प्रभाव ने शियो को भी
प्रभावित किया, और पीछे इसके नियमोद्येश में नरम राजनीति को स्थान दिया
गया । मुसलिम लीग से बिलकुल प्रथक् शिया कान्फरेन्स, सम्प्रदाय के हित के
लिये, तब से कार्य-क्षेत्र में है । आल-इंडिया मुसलिम लीग से इसका कोई
सरोकार न पहले थान अब है, और न शिया मुसलमानों की यह सस्था लीग
को अपनी नुमाइन्दा जमाअन और मि० जिन्ना को अपना काइद (नेता) मानती
है । राजा नवाबअमी साहब मरहुम शिया कान्फरेस के वर्षों काइद रहे हैं ।
कान्फरेन्स का सदर दफ्तर रायबरेली (अवध) में और उसकी शाखा लखनऊ
में है, जहाँ से 'सरफराज़' नामक, शिया कान्फरेन्स का उर्दू-दैनिक मुखपत्र,
पिछले ११ वर्षों से प्रकाशित होरहा है ।
शिया पोलिटिकल कान्फरेन्स---जिसका पूरा नाम आल-इडिया शिया
पोलिटिकल कान्फरेन्स है । आल-इंडिया शिया सोशल कान्फरेन्स उद्येशो
में राजनीतिक-कार्यकम को सम्मलित किये जाने से सरकारी मुलाज़िम जब
उससे पृथक् रहने लगे, तब शिया फिरके की अलग राजनीतिक संस्था स्थपित
करने का विचार शिया कान्फरेन्स ने स्थिर किया, किन्तु १९२९ से पूर्व वह
अपने इस निश्चय को कार्यन्वित न कर स्की । सरकारी कर्मचारियो की,
पृथक्ता ही इस राजनीतिक सस्था की स्थापना का मुख्य कारण नही थी | जैसा
कि अखिल-भारतीय शिया राजनीतिक सम्मेलन के इतिहास ने प्रकट हैं, शिया
मुसलमान प्रिथक् निर्वाचन-प्रणाली के, विपरित परिणाम को भोग चुके थे ।