शिया पोलिटिकल कान्फरेंस
इस साम्प्रदायिक निर्वाचन-प्रणाली द्वारा उनके धार्मिक, सामाजिक, राज-
नीतिक अधिकारों का सरक्षण बिलकुल नहीं होरहा था, फलतः शिक्षित शियो
में अपना अलग राजनीतिक-मच स्थापित करने की इच्छा बलवती हुई, और
१९२९ मेन्, इस संस्था की प्रयाग में स्थापना हुई, और इसका पहला अधिवेशन
अप्रैल १९३० में हुआ । सबसे पहले राजनीतिक रुप में शियो ने,साम्प्रदायिक
निर्वाचन-प्रणाली का प्रबल प्रतिरोध करते हुए, सम्मिलित निर्वाचन-प्रणाली
की स्थापना का मतालबा किया । मुश्तरका इन्तखाप की अपनी मौलिक
मॉग के साथ शिया पोलिटिकल कान्फरेन्स देश के राजनीतिक विकास में प्रतिगामी सस्था कभी नही रही है । साइमन रिपोर्ट को अस्वीकार करते हुए
गोलमेज़ कान्फरेन्स में भारतीय शिया-सम्प्रदाय के स्वतन्त्र प्रातिनिधि लिये
जाने का मतालबा आ०-इ० शिया पोलिटिकल कान्फरेन्स ने किया, किन्तु
सरकार ने उनकी यह मॉग अस्वीकार करदी । इस पर शि० पो० कान्फरेन्स
ने सरकार की तीव्र आलोचना की । सन् १९३२ में साम्प्रदायिक निर्णय का
भी कान्फरेन्स ने विरोध किया और अपने प्रस्ताव में कहा कि निर्वाचन-
प्रणाली का आधार साम्प्रदायिक न रहे और उसमें बालिग मताधिकार को
स्थान देकर उसका पूर्ण विकास किया जाय । साम्प्रदायिक-निर्णय की तीव्र
आलोचना करते हुए कान्फरेन्स ने कहा कि इसके द्वारा तो देश में और भी
अनेक सम्प्रदायों और दलोन् का जन्म होगा । मृतप्राय मुसलिम लीग को
पुनर्जीवित करने का प्रयास इसी युग में प्रारम्भ हुआ, और १९३३ में बहु-
सख्यक मुसलिम सम्प्रदाय ने सर्वदल, मुसलिम सम्मेलन का आयोजन करते
समय शिया पोलिटिकल कान्फरेन्स को निमत्रित नहीं किया, तो उसने इस
सम्मेलन के प्रति, १२ नवम्बर १९३३ को, असहयोग का प्रस्ताव पास किया,
फलतः कान्फरेन्स का कोई सदस्य इस सम्मेलन मे सम्मिलित नहीं हुआ ।
१४ जुलाई १९३४ को अ० भा० शि० पो० कान्फरेन्स ने 'मुसलिम यूनिटी
बोर्ड' से समझौता किया और चुनाव ने पूर्ण सहयोग देते हुए मौ० शौकत-
अली मरहूम और मि० अज़हरअली की मदद उस अवसर पर की जब कि दूसरी
और सर सय्यद वज़ीर हसन जैसे प्रमुख शिया सज्जन मुकाबले में उमीदवार थे ।
'युनिटी बोर्ड' ने, इस सहयोग के बदले मे वचन दिया था' के केन्द्रिय