शिया पोलिटिकल कान्फरेंस
वैधानिक समझौता के सम्बन्ध मे कान्फरेंस घोषणा कर चुकी है कि शियो
को ऐसा कोई समझौता स्वीकार नही होगा, जिसमे उनकी प्रतिनिधि सस्था,
इस कान्फरेंस, की सहमति प्राप्त न कर ली गई हो | मर स्टैफर्ड क्रिप्स के
भारत आने पर कान्फरेंस ने अपने प्रतिनिधियो से भेट करने के बारे मे पत्र-
व्यवहार किया था | किन्तु उसका कोई प्रतिफल नही निकला |
लीग की पाकिस्तान योजना के सम्बन्ध मे कान्फरेंस ने चिन्ता प्रकट
की है | यधपि प्रकाश्य रुप से लीग ने नही कहा है, किन्तु लोग पाकिस्तानी
प्रान्तो मे 'हुकूमते-इलाहिया' यानी शरई इसलामी शासन-विधान कायम
करने की कल्पाना कर रही है | मुस्लिम लीग के अप्रैल ९६४३ के वाषिक
अधिवेशन मे इस प्रकार का प्रस्ताव आने वाला था, किन्तु वह पेश नही
हुआ | इस 'हुकूमते-इलाहिया' का विधान वैसा ही होगा, जेसा हज़रत
मुहम्मद साहब के बाद चार खलीफाओ - हजरत अबूबकर, हजरत उमर, हज़रत
उसमान और हजरत अली - के शासन-काल मे रहा । यह चारो खलीफा
सुन्नत जमाअत के आदर और श्रद्धा के पात्र है और शिया इनके निन्दक
है । वह इनके नाम पर तबर्रा पढते है । अतएव शिया 'पाकिस्तान' मे
इस प्रकार के शासन-विधान के प्रबल विरोधी है। इससे उनके धामिक विश्वास
को ठेस पहुंचेगो । 'मदहे सहाबा' और 'तबर्रा' का इससे सम्बन्ध है, और इस
प्रश्न पर शिया जमाअत सुन्नियो से कोई समझौता करने को कदापि तैयार नही
है। भारतीय मुसलमानो मे शियोन् की संख्या कम-से-कम दो करोड़ है, जबकि
कुछ लोग इस संस्था को तीन करोड़ तक समझते है । शियो की अलग
मदु मशुमारी न होने से ठीक आकडे प्राप्त नही है। फरवरी ९६४३ के सर्व-
दल-नेता सम्मेलन मे इस काफंरेन्स को भी निमन्त्रित किया गया था । वर्तमान
वैधानिक और राजनीतिक सड़्कट के निवारण के सम्बन्ध मे भी ९९ अप्रैल
९६४३ को कान्फरेन्स की कार्यकारिणी एक चिंतापूर्ण प्रस्ताव स्वीकार कर
चुकी है। व्यक्तिगत रुप से पून्जीपति और सत्ताधारी कुछ शिये लीग मे
शामिल है, किन्तु कान्फरेन्स उनको अपनी जाति का प्रतिनिधि स्वीकार नही
करती । कान्फरेन्स का मुख्य कार्यालय लखनऊ मे है, और अंगरेज़ी साप्ताहिक
लाइट उसका मुखपत्र है