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आलैण्ड-द्वीप-समूह
 


शब्दो मे कहा है कि जर्मन विशुद्ध आर्य जाति है। आर्य जाति ने ही सबसे प्रथम संसार मे सभ्यता को जन्म दिया और संस्कृति की रक्षा भी उसी ने की। यदि हिटलर का तात्पर्य आर्यवर्त्त के आर्यो से होता, तो इस कथन में सार भी होता, क्योंकि संसार में सबसे प्राचीन धर्म वैदिक धर्म है। वेद अपौरुषेय हैं और यूरोपीय विद्वान् भी यह मानते हैं कि वेद सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं। इससे यह स्पष्ट है कि वेदो के माननेवाले आर्य भी प्राचीन हैं। परन्तु हिटलर ऐसा नही मानता। वह केवल जर्मन को ही श्रष्ठ आर्य जाति मानता है। यह वास्तव मे भारी भ्रम है। आज वस्तुत: यूरोप में कोई भी जाति आर्य कहलाने का दावा करे तो यह एक प्रकार की विडम्बना ही होगी। भारत में भी नस्लो और जातियो का इतना मिश्रण हो गया है कि आज यह नहीं कहा जा सकता कि सभी हिन्दू कहलानेवाले प्राचीन आर्य जाति के अंग हैं।


आलैण्ड द्वीप-समूह--यह द्वीप-समूह बाल्टिक सागर मे स्वीडन और फिनलैण्ड के मध्य में है। क्षेत्रफल ५७६ वर्गमील और जनसंख्या २७,००० है। यह द्वीप सामरिक महत्व रखते हैं। यदि इनमें किलेबन्दी कर दी जाय, तो इनका प्रयोग रूस, फिनलैण्ड और स्वीडन पर आक्रमण करने के लिए किया जा सकता है। जिसके अधीन यह द्वीप होंगे वह स्वीडन और जर्मनी के व्यापार मे भी बाधा डाल सकता है। इनमे स्वीडिश जनता रहती है, परन्तु प्राचीन काल से यह द्वीप फिनलैण्ड के पास हैं। सन् १८०६ में वह फिनलैण्ड के साथ रूस के पास चले गये। सन् १८५६ मे, क्रीमियन-युद्ध के बाद, स्वीडन की प्रार्थना पर, रूस ने इन द्वीपो में किलेबन्दी नहीं की। सन् १९१७ में रूसी राज्यक्रान्ति के बाद जन-मत लेने पर यही निश्चय हुआ कि यह द्वीप स्वीडन को दे दिये जायॅ। फरवरी १९१८ में स्वीडन की सेना द्वीपो में प्रविष्ट हुई। परन्तु जब जर्मन-सेना ने उन पर अधिकार जमा लिया तब स्वीडन की सेना वापस आ गई। नवम्बर १९१८ मे जर्मन-सेना वापस आ गई। अब स्वीडन और फिनलैण्ड में, इन द्वीपो के आधिपत्य के संबंध में, संर्घष शुरू हो गया। सन् १९२१ मे राष्ट्र-संघ ने यह निर्णय किया कि यह द्वीप फिनलैण्ड को दे दिये जायॅ, परन्तु उन्हे स्वायत्त-शासन दे दिया जाय और