कार्य के अतिरिक्त यह दल किसानो-मज़दूरों के संगठन का कार्य स्वतंत्र रूप से भी करता रहा है और किसान सभा तथा मज़दूर सभा मे, दूसरे दलो की अपेक्षा, इसके सदस्य सबसे अधिक संख्या में है। इसका अखिल-भारतीय संगठन है जो अखिल-भारतीय कांग्रेस-समाजवादी दल के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रत्येक प्रान्त मे इसकी शाखाएँ है। ज़िलो और नगरो में भी इसका संगठन है। इसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना और भारत मे समाजवादी शासन-प्रणाली की स्थापना करना है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है--
(१) समस्त सत्ता जनता के हाथ मे रहे।
(२) देश के आर्थिक-जीवन का नियत्रण एव विकास राज्य द्वारा हो।
(३) सबसे पहले बड़े उद्योगो का समाजीकरण किया जाय, जिससे उत्पत्ति, वितरण तथा विनिमय के समस्त साधनो पर समाज का स्वाम्य स्थापित होसके।
(४) विदेशी व्यापार पर राज्य का एकाधिकार हो।
(५) राजाओं, नवाबो तथा ज़मीदारो को, बिना किसी प्रकार की क्षति-पूर्ति दिये, ज़मीदारी प्रथा का अन्त।
(६) किसानो तथा मज़दूरो के क़र्जे़ की माफ़ी।
(७ ) व्यावसायिक आधार पर वयस्क मताधिकार।
जब सन् १९३६ मे कांग्रेस ने यह निश्चय किया कि कांग्रेस को प्रान्तीय चुनाव में भाग लेना चाहिए, तब पहले तो समाजवादियो ने कौसिल-प्रवेश का विरोध किया, परन्तु बाद मे, साम्राज्यवाद के विरोध के लिए, उन्होने भी कौसिल-प्रवेश का निश्चय किया। काफी संख्या में समाजवादी प्रान्तीय धारासभाओ मे चुने गये। जब सन् १९३७ मे, देहली मे, मार्च मे, काग्रेस की अखिल-भारतीय कमिटी का अधिवेशन हुआ तो इन्होने मंत्रि-पद-ग्रहण का विरोध किया। परन्तु पद-ग्रहण का प्रस्ताव गान्धीजी के प्रभाव से पास हो गया। जब कांग्रेस मंत्रि-मण्डल बनाये गये, तब समाजवादी सदस्यों ने मंत्रि-पद ग्रहण करना अस्वीकार कर दिया। कांग्रेस-शासन-नीति की समाजवादियो ने कड़ी आलोचना की। कांग्रेस-सरकारों ने किसान और मज़दूरो के आन्दो-