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पृष्ठ:Antarrashtriya Gyankosh.pdf/९५

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ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ाँ
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पंजाब में गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया गया। देहली में अल्लामा ‘मशरिक़ी' भारत सरकार द्वारा गिरफ्तार किये गये। लाहोर में मुस्लिम-लीग के अधिवेशन में श्री मुहम्मदअली जिन्ना ने ख़ाकसारों के प्रति सहानुभूति प्रकट की और पंजाब सरकार की आलोचना की तथा घटना की निष्पक्ष जॉच के लिए प्रस्ताव पास हुआ। परन्तु ख़ाकसार फिर भी लीग से अलग ही रहे। श्री जिन्ना यह चाहते थे कि वे मुस्लिम-लीग में शामिल होजायॅ। परन्तु ८ मई १९४० के वक्तव्य में श्री जिन्ना ने स्पष्ट शब्दो मे यह कह दिया--"मैं यह बतला देना चाहता हूँ कि ख़ाकसार आन्दोलन लीग से बिल्कुल स्वतंत्र है और उसका लीग से कोई सबंध नही है। लीग उनके संबंध में कुछ भी नहीं कर सकती, क्योकि उनके संगठन की काररवाइयो पर हमारा कोई नियंत्रण नही और न हमारे पास ऐसा कोई अधिकार है जो उनकी ओर से कोई समझौता कर सके।”


खान अब्दुल गफ्फार खाॅ--जन्म सन् १८९०। ख़ुदाई ख़िदमतगार संगठन के नेता तथा संचालक। रौलट-ऐक्ट के विरोध मे, १९१९ में, आन्दोलन किया। असहयोग-आन्दोलन में ३ साल की सख्त सज़ा दी गई। सन् १९२९ में अफ़ग़ान जिरगो का संगठन किया। सन् १९३२ से १९३४ तक हज़ारीबाग़ जेल ( बिहार ) मे राजबन्दी रहे। सन् १९३४ में, अपने भाई डा० ख़ान साहब सहित, पंजाब से निर्वासित कर दिये गये। तब वर्धा के निकट सेवाग्राम आश्रम में गान्धीजी के पास रहे। सन् १९३५ में, बम्बई कांग्रेस अधिवेशन के संबंध में भाषण देने पर, दो साल की सख्त सज़ा दी गई। ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ॉ महात्मा गान्धी के अहिंसावाद के कट्टर समर्थक हैं । महात्माजी के बाद ख़ॉ साहब ही हैं, जो अहिंसा के अनन्य पुजारी हैं। उनके १,००,००० से भी अधिक अनुयायी हैं जो खुदाई ख़िदमतगार के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह वास्तव में एक महान् आश्चर्य ही है कि इन वीर पठानो ने हिंसा का त्याग कर अहिंसा का व्रत लिया है और सत्याग्रह आन्दोलन ( १९३०-३२ ) में इनकी कठिन परीक्षा भी हो चुकी है। सन् १९३० ई० में गढ़वाली सैनिको का निहत्थी जनता पर गोली चलाने से इनकार, फिर पेशावर गोली-काण्ड और पठानो का बलिदान, कांग्रेस द्वारा गोली-काण्ड की जॉच और उसकी रिपोर्ट की ज़ब्ती आदि सभी घटनाये इस प्रसङ्ग से सम्बन्धित हैं।