पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१०३

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करिने लोभ मूल की सारा। पीपल के निरक संसारा॥ सूद्र जु तीन जुधिष्ठर गई। सो महि बडो को कठनाई॥ राजा लोभ करेंगे घना । जस पर त्याग करेंगे अपना ॥ कलि के लोग न दे न्याई । लेहि अकोर तब करें सलाई । कलि में बात न माने सास। उलटि हि वे बलुते त्रास ॥ बुद्धि धर्म कलि माहिं चलाई। बेद पुरानन निदे गई। कलि मे पुत्र ऐसा परभाई। मिली कारण मोरे माई ॥ कलि में गउ छीर तुछ यहीं। अंत न बछरा अपनो लेई ॥ और सुनो राज अजुगता। अंम पाय बा तजिहें पूता ॥ मातपिता का धन हरि लेई। ले लुकाय मिली को देई । ससुरा लार बनू सों भागे। जेठा भ्रात बधू सों लागे॥ मातापिता न माने कोई। सुनो राय ऐसी कलि लोई॥ सिष ही भोगें गुरु की नारी। ये अजुगत कलि होहिं मझारी॥ कलि मे विप्र तजें षट की। पाले नाहि आपने धर्मा। बिनि न्झायें वे अब जु पाई। हरि पूजा चित नानि धराई। छारें कुल हि धर्म प्राचारा। पतस्यिा सों करि बिभधारा ॥ कलि मे कृष्ण देव पल्लई। मोलान मंत्र सों चित धरई॥ बिप्र हि देत बलुत करि लोमा। अतीत हि देत बतुत टुष होगा। बिप्र म पावे कलि मे दाना। ब्रह्म भाट को राधे माना। दुरि टुरिजन करें कलि माहीं। कहें कृष्ण ऐसी कलि ताहीं॥ झूठा कलि मे बोलें जेता। कलि मे राय मानियें तेता॥ साचो साथ बलुत जो लोई। ता को राय न माने कोई ॥