पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१०७

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॥१॥ दोला। कुंवर हेत अति कामिनी कामिनि लेत कुमार। सुपने मे प्रीतम मिले बिछुस्त नहीं संभार॥ . चौपई। उठी कुंवरि कछु नाहिं संभाए। छिन छिन उठे बिरल की झारा॥ ले उसास अंसुवां भरि अावे। कुंवरि बिया कोमर मन पावे ॥ दिन दिन प्रीति बड़े अधिकाई । अति व्याकुल चित रयो न जाई ॥ छिन भीतर छिन बाहरि श्रावे। भारहिं मैन पल पलक न लावे॥ उगरे तन मन मारे हई। लिय की पीर न काढूं कई ॥ योगा। दिन उदास प्रीतम बिना निषि भरे ट्रिग नीर। अंतर जरि पिंजर मरे प्रबल बिल की पीर॥ . ..चोपई। पिन शेवे षिन गावे सोवे। लिये अनि तम बिरल संता। कुसम सेज पर जो पग पाई। रोम रोम बेन संचरई ॥ मन चिंता करि त्रिया बियोगी। सें ध्यान स्ले धरि जोगी॥ जिलिं तन मे बिरला संघाई। सो प्रानी तन जीवत मरई॥ बिस्त की चिनगी जिन तन पर नरे। दिन दिन अगिन अधिक पर जरे। योला। बस्त्र मलीन उदास चित यि उसास भरि लेय। भूष नीद लल्या तजें विरही लछान येह ॥