पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/११२

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॥ भूत प्रेत उकनि सब आवे। जो देखे सो मास्न धावे॥ टूती कहे जान दे मोही। जो मागे सो देहों तोही ॥ - दोला। 'पुरी संचार न पावही बलुत रही पचिहारि। नारद आवत देषिके मन मे करे बिचारि॥ चोपई। चित्ररेष नारख पे आई। करि परनाम सीस में लाई॥ . . नारर रिष बोले सुनि नारी। कोंन काज कहां बाइ कुंवारी ॥ बोली नारि सुनो रिष राई। कारज येक इहां मे बाई॥ बानासुर की राज दुलारी। सुपने अनुरुध देषि कुमारी॥ अति वियोग ता के संग माती। नीद न परे घोंस अरु राती॥ . दोला। . भूष प्यास लागे नहीं मरे न जीवे नारि। कबलूं मूरछि मोन धरि कबळू उठे पुकारि॥ चोपई। नेन नीर भरि भरि हरि लेई। लिये जरनि बिस्ला टुष देई ।। ज्यों ज्यों स्वास लेत अधिकाई। बिस्त अगिन तन सही न जाई॥ भस्म होय छिन माहि सरीरा। बलुत टरे नेनन तें नीरा ॥ दिन बीते रजनी जब श्रावे। अति व्याकुल छिन पलक न लावे॥ सीतल अंग न सुरति सरीरा। बिस भरि गयों न पावे पीरा ॥ दोला। टेषि बिपति अति कुवरि की हो पाई इहिं गांव ।