पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/११५

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ल्याउं कुंवरि भेटो महि बाही। ...... मे जानी निजु बिथा तुम्हारी। मिलो अाज सुपने की बारी॥ दोला। कुंवर जीव तब बाई यों धीरज धरि मन मांहि । कोन ठोर के सुंदरी दोरि गही उठि बाहि॥ चौपई। चित्ररेषा बोली तिस बारा। सुपना कहाय न साज कुंवारा ॥ मे तो कही बात की बातां। .... बरि कुंवर बोल्या सुनि नारी.। साच हि कहो अगिम पर जारी ॥ अति कठोर तोहि दया न आई। बिरल अगिन पर ज्यों दौं लाई॥ तब ही कही टूती मिनु बाता। प्रोणतपुर उपा रंग राता॥ मेला। बिरह बिथा व्याकुल बिकल तिहि तें तोहि अपार। बिधना ने बानी रची बाहो प्रेम अपार॥ चौपई। बानासुर राजा का माउं। प्रोणत नगर बसे उस ठाउँ॥ ता की कन्या ज्या मारी। रूप रंग बिया दस च्यारी॥ जुदा मल्ल कंचन चोबाए। असी सक्स जोधा रघुवारा ॥ चींटी पाव संचारे नाही। सो प्रीतम जु बसें उस ठाई॥ जो तुम चलो बेगि ले जाउं। उर अंतर की तपति बुझाउं॥ योदया। सल्स ग्रेकाइस जोजम नि निकटि समुद्र के तीर।