पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

॥१०॥ लें सूर कर अपने जाई। सूझ तन हि अमले न पाई॥ होस। उमति मिले दोष दले चळ दिस माहिं मार। धनुष छाडि तस्वाहि माहि कोई गहे करम् ॥ चौपई। दल मे सूर को किलकारा। पो बलुत बखान की मार॥ कोउ थियार घर को तुरंता। कोड स्य चूर करें भगवंता॥ घोरा कट कट किधर परें। कोउ सिर पर लोटें घरे॥ कोउ टेकिके ठाक पुकारें। कोउ भरे रुधिर विष डरें। कोउ सूर अमर पर टेके। कोऊ लाथ दोउ कर टेके। बलुते जुद्ध उठा रण माहीं। जहं देखें तहं मास्न जाहीं॥ होला। टुंद जुद्ध भारी भयो कयो कोन पे जाय। इते कृष्ण जादों पती उत असुरन को राय ॥ चोपई। श्रोणत नदी भई श्रापारा। लोटें सूर परे बिकरार ॥ तहां गीध गज मद कर्मधी। हों नहिं जानो उठि सर संघी॥ जोधा देत करें किलकारा। उमडी नदी रुधिर की धास ॥ धनुष टूट जनु सीप समाना। बसें भूमि भूतल पटाना॥ गीध चील्ल यो काग कमला। अति अंधाम अंबुक प्रतकाला ॥ होला। जोगनि रुधिर अंधात हैं कंउमाल कर लीन। .