पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१३६

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॥ १२०॥ रखा मो चिन्त/ सुरनाथ। फिस्लिों मे तित ता के साथ ॥ क्रीडा करत तत्र छल छाय। बायु उठाय देय पट पाय॥ महा कार्य मे मदन सहाय। करे कृपा करिके सुखदाय ॥ सुरपति शासन ललिके पोंन । वल्न त्रिबिधि लागो तहं तीन ॥ सहित बसन्त मदन तह प्राय। वो भयो शर धनुष चाय ॥ गई मेनका तंह छबि धाम। करि कौशिक को प्रथम प्रणाम ॥ भीरु भई क्रीडा बिस्तार। करि लागी तह करण बिहार॥ . पवन दियो पट तास उपाय। बिहंसि समेटन लगी लजाय ॥ तोरति फूल भुजान उठाय। उरज उतग निबिउ दशाय॥ करि कटाक्ष मुनि की दिशि चाहि । नीबी सिथिल रुत गहि ताहि ॥ करि चख चपल बिलोकति तत्र। बेठे लखत महा मुनि यत्र । अकथित भरी रूप गुण बाम। ऐसो रचो चरित अभिराम ॥ देखि भरो मुनि के लिय भाव। मारो मदन बान लखि दाव॥ लई बोलाइ ताहि मुनि पास। गई मेनका करि मृड हास ॥ करण लगे दोउ सु रति विहार। बलुत काल गो बीति उदार॥ एक दिवस सम जानो तोन। रमे मेनका के संग जोन ॥ सु मुनि मेनका मे अभिराम। जनमाई कन्या गुण धाम ॥ हिमगिरि निकट परम शुचि देश। नदी मालिनी तीर सुबेश ॥ छोडि मेनका सुता ललाम। गई कार्य करि सुरपति धाम ॥ लखि निर्जन मे कन्या प्राय। बेठे घेरि शकुन सुखदाय ॥ क्रव्याटन सो ताहि बचाय। लियो शकुन्त कुन्त सों छाय। हम सन्ध्या करिव के हेत। गए नदी तट बिधि बस चेत ॥