पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/२५

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आगे राजा में यह बिचारि पंडितनि को समाज करि तुम में कोऊ ऐसो पंडित है जो मेरे पुत्रनि को नीति देनयो जन्म करे। कन्यो है। जैसें काच कांचन की कत मनि जनाय तैसें साध की संगति में बुद्धि पाय लोय अरु नीच की संगति में नीच। होला। संगति कीजे साध की लो और की व्या मोडी संगति नीच की बाठों पर उपा तहां राजा की. बात सुनि विष्णुशर्मा वृद्ध बामन स! को जान वृहस्पति समान बोल्यो कि महाराज । राजव योग्य हैं अयोग्य कों विद्या न दीजिये क्योंकि वह होय अरु जो सिद्ध होय तो अनीति विशेष करे बिर' श्रीगुन बङ करि गांठि बांध तातें कुपात्र को न पढ़ा कों नवो नवो भोजन खवाइये तो तू बिलूखे की घा कोटि जतन करि बगुला को पड़ाइये पर सुश्रा सो धर्म में निपुन लोय तो लू माझी मावे की घात महाराज तिलारे कुल में तो निर्गुनी बालक न होय है की खान में काच न उपजे। लम विद्या बेचत नाहीं नाहीं पर तुम्हारी प्रार्थना है या तें हों तिहारे पुत्रनि का ही छः महीना में नीति मार्ग में निपुन करिहों। यह सुनि राजा वृद्ध बाहान विष्णुशर्मा ते बोल्यो अही गति तें देखो नान्हें कीट दू सञ्जननि के माथे चढ़तु