पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/२९

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॥३॥ . को मूड काटि बीबर में देवी को व्यो अरु प्रापर्ने कि राजा के अन तें तो उतस्न भयो पर अब नि में जीवनों उचित नाहिं। यह समझि आपनों वानी के अागू धयो। उन दोउन को मखो। में बिचायो कि संसार में रांड निपूती व्हे जीनों : ठानि वा तू में निज माथो चढायो। विन तीननि वा की पुत्री में बिचायो कि निगोडी नाटी है वनों भलो नाहिं। यह समझि-विन टू मस्तक का। मुख राख्यो। यह चरित्र देखि नरपति नें जी माहिं ति से जीव अनेक पृथी में उपजतु खपत हैं पर ऐसे सूर : हे तातें अब या को कुटुंब नास करि मोहि राज कर यह सोच समझि ज्यों भूपाल निज मूंउ उतारनि ला में आय कर गयो अरु कयो राजा तू साहस जिन | में भंग नाहिं । राजा कही माता मोहि राज तें कछु । पुनि देवी बोली हों तेरे धर्म श्री सेवक के कर्म पर ' जो बर मांगे सो देउ। राजा कही मा जो तुम तुष्ट भई । कों जीव दान देउ। जब उन पातालतें अमृत लाय विन। वायो तब राजा चुपचाप व्हां तें चलि निज मंदिर में : ढू उन तीनों को घर राखि अाप राजा के समीप प में वाहि पूच्चो तुम गये हे तहां कहा देखि आये। पु| कही महाराज एक नारी रोवति ही। जोलों हों वहां गये। स्ही में वाहि न पायो पुनि में बगद आप के लिंग '