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॥३॥ . क्यों तेरे गर्नु भयो है जु तु मेरे बुलाये नाही बोलत छुरी करि नाक काट्यो। पीछे अहीरी बाई वा सो समाचार । तब दुती कन्यो। मेरो मुल जु कस्तु है अहीरी बापु को बांधि वह छोडि दोन्ही । वह ना ले आपने घर गई। तब प्रात ली नाई वा सों बु उहि एक बरो छुरा ले प्रानि दीन्हो । तब ऊन्हि घर मे उगरि दीयो। तब ऊलि नाईनि पुकारि ऊठी! लि मेरो नांक काट्यो। नांक हाथि ले चोतरा अनि वन अहीरी अहीर के पुछे यह कही। अरे पापी , सी पतिव्रता को कलंक लगाई सके अधिक लु कल्ल लार प्रांठों लोकपाल जानत है यह मेरो पाठो देवता हैं जैसी मे ही कोंण देवता सुजी चंद्रमा वायु प्रीथी जलु हृदय यम दिन रात्रि दोऊ संध्या ए चरित्र को न जानत हैं। ताते देषु मेरो मुषु जो हूं मेरो मुष जैसो ठुतौ तेसो ही देषिहै। तब यह बात । करि मुष अहीरी को देष्यो जेसो लुतो तेसो ही मुष दे परखो। यह तो ऐसी भई। अब यह साध जु मेरे सं। चार सुनछ। यह साधु घर ते निकस्यो निकसि बारमें बलुत ट्रव्य ले प्रायो। ईहां पाई रात्रि बेस्या के घर: अपने घर के दवार मे कल करि काठ को बेताल बन। परि एक बंडी रतन रष्यो वा रतन के लोभ तें वह । ऊठिकर वल रतन कों हाथ पसारि रतन लेंन लाग्यो