पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/४७

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॥1॥ को जनम भयो तब हि ते ता को घी की काल जैसे अपराधि को राज अाग्या ते जब माखि की ठोर कह ठोर पग पग नियरे धावे। ओर जाते जोबन जीवनु ठकूरा इति म्यंत्र लू को एक ठोर बासु र स. की सी चंचल हैं ईन्द को भोग थोरे हि दिन मे। पंडित लोई सुनांन्दि बस्तून को सोक न करे। जे के बेग करि कळु कछु के काठ एकत्र मिले लिब प्रवाह ते न्यारे न्यारे लो हि तेसे प्राणी काल के बेग हि अरु न्यारे न्यारे से हि। बाते पंच महाभूत एकत्रि मिले कि तब देह उपजे वे पांची न्यारे हो हि तब दे देल के उपजे और बिनास ते जु पंडित होई सो सुर जाते मनुष्य जिनि जिनि बस्त में जितनी हि सनेल सोक के बीज बोवे ईह संसार मे सदा कालु सों एकः जाते अपनी देह तु सों सदा संगु मांहि और सों कहां संजोग एकू दिन बिजोग कोरे तेसे जनम प्रति को करे बंधुन को मिलाय मिल लवो मिले हि मे नीको श्रा है जैसे अपथ्य बस्तू षाये ते उहि छिण निकी लागे अ जैसे नंदी को प्रवाळु जाई परु फीरो नाहि तेसे राति श्राव लीये जात परु फिरे नाहि । संसार मे साध की ते अधिक है पर सो लु बिजोग रुप षाडे करि काट बरो टुष है। जाते पंडित प्रति को सममि सब जर' जैसे बरिषाकाल मे चांम के बंधन ठिले लोत है। मा