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॥५॥ . यादव असुरन सों लात होत महा संग्राम ठा देखत कृष में करत युद्ध बलराम ॥ मारूबाजता करखेत कउखा गाते हैं चारन जस पति अश्वपति से गजपति गजपति से स्थी रथी से पे स्ले हैं। इधर उधर के सूर बीर पिल पिलके हाथ म खेत छोड अपना जी ले भागते में घायल खडे झूम में तखार लिये चारों ओर घूमते हैं श्री लोध पर लो से लोनू की नदी वह चली हे तिस में जहा तहां हा। सो टापू से जनाते हैं श्री सूरें मगर सीं। महादेव संग लिये सिर चुन चुन मुंउमाल बनाय बनाय पर शाल कूकर आपस में लड लंड लोथें खेंच खेंच ल फार खाते हैं। कोई अांखें निकाल निकाल धडे निदान देवताओं के देखते ही देखते बलराम जी ने र काट डाला कि जों किसान खेती काट ले। श्री सिसुपाल सब दल कटाय कई एक घायल संग लिये । जा वडे रहे। तहां सिसुपाल ने बलुत अछताय पछ जुरासिंधु से कहा कि अब तो अपजस पाय श्री कुल संसार में जीना उचित नहीं इस से श्राप त्रामा देतो में स्न नातर लों करितों बन बास। लें जोग छांडों सब ग्रास ॥ गई श्रान पत अब क्यों जीजे। राखि प्रान क्यों अपजस लीजे॥