पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/५३

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ठनका कि इस बीच किसी ने आय कहा जो है सेना कट गई श्री दुलहन भी न मिली अब वहां से लिये पाता है। इतनी बात के सुनते ही सिमपाल चिंता कर अवाक हो रही। आगे सिसुपाल श्री जुरासिंधु का भागना सुन रुव अपनी सभा में धान बेठा और सब को सुनाव व मेरे हाथ से बच कहां जा सकता है अभी जाय विरे ले ग्राउं तो मेरा नाम रुक्म नहीं तो फिर कुंडलपुर पैज कर रुक्म एक अक्षौस्लिी दल ले श्री कृषचंद धाया और उस ने यादवों का दल जा घेरा। उस क लोगों से कहा कि तुम तो यादवों को मारो श्री में 3 जीता पकड लाता हूं। इतनी बात के सुनते ही यटुबंसियों से युद्ध करने लगे श्री वह स्थ बजाय श्री जाय ललकारकर बोला अरे कपटी गंवार तू क्या बालकपन में जैसे ते ने दूध दही की चोरी करी है प्राय सुंदरि ली। ब्रज बासी हम नहीं अहीर। ऐसे कस्कर लीने तीर॥ बिष के बुझे लिये उन वीन। खेंच धनुष सर छोडे तीन ॥ उन बानों को प्राते देख श्री कृषचंद ने बीच ही का और बान चलाए प्रभु ने वे भी काट गिराए श्री अपर