पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

॥४३॥ इतनी बात के सुनते ही सूरसेन जी ने पुरोहित बुलाट | कहा कि तुम श्री कृष के विवाह का दिन ठन्हा : पत्रा खोल भला महीना दिन बार नक्षत्र देख शुभ र ! ब्याह का दिन ठल्माय दिया। तब राजा उग्रसेन ने । तो यह अाज्ञा दी कि तुम ब्यान की सब सामा इकर बैठ पत्र लिख लिख पांउव कोख यादि सब देस। को बामनों के लाथ भिजवाए। चीठी पाते ही स | हो उठ धाए तिन्हों के साथ ब्रानान पंडित भाट ' लिये। और ये समाचार पाय राजा भीष्मंक ने भी बलुत । आभूषन श्री रथ हाथी घोडे दास दासियों के उरोले : कन्यादान का संकल्प मन ही में ले अति बिनती भेज दिया। उधर से तो देस देस के नरेस पाए श्री इधर । का पठाया सब सामा लिये वह ब्रासन भी आया शोभा द्वारिका पुरी की कुछ बरनी नहीं जाती। आरे पाया तो सब रीति भांति कर बर कन्या को मंढे बैठाया और सब बडे बडे मु यटुबंसी भी प्राय बेठे। पंडित तहां बेद उच्चरें। रुक्मिनि संग हरि भांवर फिरें। कोल हुंदुभी भेर बजावें। लष हि देव पनुप बरसावें॥ सिद्ध साध चारन गंधर्ब।