पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/६३

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॥४७॥ .. . दोहा। अभिमानी त्यागी तरुन कुसली धनी कुर भव्य छमाजुत सुभग पुनि केलि कलानि रति समस्थ सुंदर बचन र नायक गुन गाय ते सब कल्त जु कृष में जाते नायक राय ऐसे गुन जा नायक में सो नायका के पैर काले परे अबार जानि कागद धरि नहाने गये। श्री कृषचंद सरूप धारन करि वा पद को ग्रंथ में लिखि कागद । ण्य चले गये। जयदेव ने प्राइ देखि अचंभित कै स्त्री कही कि तुम ही फिरि आइ लिखि गये हो टूसरो के सुनि स्त्री को प्रदक्षिन कियो। नीलाचल को राजा हूं एक गीतगोबिंद की पोथी बन - को बुलाइ कधी या ग्रंथ बिख्यात करो। पंडितनि' नई हे गीतगोबिंद की पोथी हमारे पास है। राजा बिंद यही सांच है। पंउितन्ह मानो नहीं। यह ट पोथी श्री जगनाथ जी के मंदिर में धरि दीजिये जा प्रमान है। सोई कियो। प्रभु ने जयदेव को ग्रंथ : पसि राजा को ग्रंथ बालि गरि दियो । राजा खिसिट' में डूबने चल्यो। प्रभु ने कयों राजा वृथा तन व जयस्व के सदृश टूसरो ग्रंथ नहीं है ता ते एक एक : लिखाइ दे ता के संग है ये लू ख्यात लोगों। एक समें बिक्रम की सभा में देवता राग सुने आये राः ।