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पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/७६

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॥६॥ कों पालकी मे नाच की। फेरी नृप डौंडी यह प्रोडी बात जानी महा कहा राजा रंक पठे नीकी ठौर जानिके। अक्षर मधुर और मधुर सुरनि ही सौ गांवे जब लाल प्यारी किंग ही ले मानिके। सुनी यह रीति एक मुगल ने धारि लई पडे चले घोरे आगे स्याम रूप ठानिके। पोधी को प्रताप स्वर्ग गावत हैं देव बधू श्राव ही जु रीमि लिष्यो निज कर श्रानिके। पोथी की तो बात सब कही में सुहात लिये सुनो और बात ता मे अति अधिकाईये। गाठि में मुळूर मग चलत में ठग मिले कहो कहां जात जहां तुम चलि जाईये। जानि लई श्राप षोलि ट्रव्य पकण्य दियो लीयो चाहो जोई सोई मो को लाइये। दुष्टनि समझि कही कीनी इनि बिया अलो प्रावे जो नगर इन्हें बेगि पकराये। एक कहे गरी मारि भलो है बिचार यही एक को मारी मति धन हाथ आयो है। जो पे ले पिछानि कहूं कीजिये निदान कहा हाथ पाव काटि बडे गाउ पधरायो है। अायो तहां राजा एक देषिके बिबेक भयो छ्यो उजियारो श्री प्रसन दरसायो है। बार निकासि मानो चंद्रमा प्रकासि ससि पूथ्यो इतिहास कयो ऐसो तन पायो है। बडेई प्रभाववान सके को बषानि अहो मेरो कोउ भूरि भाग दरसन कीजिये। पालिकी बैठाय लिये किये सब ठठ नीके जीके भाये भये कळू अग्या मोहि दीजिये। करी हरि साध सेवा नाना पकवान मेवा श्रावे जोई संत तिने देषि देषि भीजिये। बाई वेई ठग माला तिलक चिलक किये किलके कही बडे बंधु लषे जीजिये। नृपति बुलाय कही लिये हरि भाइ भरे ठरे तेरे भाग अब सेवा फल लीजिये। गयो ले मल्ल मांझ टहल लगाये लोग लागे लोन भोग जिय संका तन छीजिये। मागे बार