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॥६॥ जा मे तन निर्बाह होय भोय गई ओरे बात भक्ति लागी प्यारीये। ठाले मंडी माझ पट बेचन ले जन कोउ अायो मो को ट्रेलु देह मेरी है उपारिये। लाग्यो देन अाधी फार प्राधे सों न काम होत दियो सब लेलो जो यही जिय धारिये। तिया सुत मात मग चाहें भूषे अावे कब दबि स्टे लाटनि में लावे कहा धाम को। सांचो भक्ति भाव जानि निपट सुजानि वे तो कृपा के निधान ग्रह सोच पस्यो स्याम कों। बाल रले धाये दिन तीनयों बितये जब श्राये घर गरि दई कई लो श्राराम कों। माता करे सोर कोड हाकि मरोरि बांधे डाग बिन जाने सुत लेत नही दाम को। गये जन दोय च्यारि ट्रॅटिक लिवाय लाये प्राये घर सुनी बात जानी प्रभु पीर कों। रले सुष पाय कृपा करी रघुराय दई छिन में लुटाव सब बोलि भक्त भीर को। दियो छोडि तानों बानों सुष सामानों लियो कियो रोस धायें सुनि विप्र तजि धीर कों। क्यों रेतें जुलाहे धन पायो न बुलाये हमें सुद्रनि को दियो जावो कहे यों कबीर को। क्यों जू उठि जाउं कळू चोरी धन लाउं नित लरि गाउं कोउ राह में न मारी है। उन को ले मान कियो याही में अपमान भयो यो जो पे जाय हमे तोही तो जिवारी है। घर में तो नाही मंडी जाही तुम हो बेठे नीट के छुटायो पैरो छिपे ब्याधि टारी है। आये प्रभु श्राप द्रव्य ल्याये समाधान कियो लियो सुख हो भक्ति कीरति उजारी है। ब्राहमान को रूप धरि अाय छिपि बेठे जहां काले कों मरत भूषे जावो जी कबीर के। कोउ जाय द्वार तालि देत अठाई सेर बेर जिन लावो चले जाइयो बहीर के। प्राये घर मांझ देषि निपट मगन भये नये नये कौतुकये कैसे रहे धीर के। वारमुखी लई संग