पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ४ ) उदेश्य तो हे अपने देश वासियो में हिन्दीकी सची लगन करने के साथ ही साथ विघा तथा ज्ञान की पिपासाको उत्तेजित करना; फिर इसी ज्ञन कोशकी अनन्त ज्ञान भन्डार व्दारा शान्त करना। दुसरे धर्म, समाज, विज्ञान तथा इतिहासके अनेक विवादग्रस्त विषयों पर असीम उदारता से प्र्त्येक विचार तथा भावोंका नग्न चित्र खींचकर ही छोड़ दिया गया हे-- किसी विशेष मतका समर्थन नहीं किया गया हें। एसी सत्य पुर्ण तथा निप्पक्ष श्रालोचनात्रों व्दारा सच्चे स्थिति ज्ञानके कारण देश तथा समाजसे सबचित भावोके विनाश तथा परस्पर सहानुभोतिक प्रेम तथा रागात्मक ल्म्बन्धकी पूर्ण सम्माचनाकी जाती हे। इस साहस पूर्ण प्रयत्नका श्रन्तिम ध्येय हे भविष्यके लिए श्राधुनिक समयकी सच्ची स्थिति तथा सम्यताका पुर्ण व्योरा जाननेका अनुपम साधन छोड़ जाना। इस ज्ञान- भन्डार की सहयतासे आनेवाले केवल इह कालिक तथा तत्कालीन सम्यताविकासकी तुलनामें ही सहायता नहीं मिलेगी, वरन वे इन अथाह-सच्चित श्रनुमवैसे लाभ उठाकर उन्न्ति-पथपर श्रधिक सुगमतासे हो सकेगें।

  ज्ञानकोश एसे प्रयासमें अपने जिवन की सर्वोत्तम शक्तियॉक बलिदान करके भी पूर्ण सफलताको आशा करना सरल नहीं है। इसमें जिस विपुल व्ययकी आवश्यकता है तथा अन्य जो वाधायें, आपत्तियाँ तथा कठिनाइयाँ पग-पग पर उपस्थित होती है उनका विचार करके व्यक्तिगत परिक्षमसे इसके सफल होनेकी आशा करना दुराशामात्र है। इस दुस्साध्य प्रयतकी पूर्ण सफलता तो सम्पूर्ण हिन्दी-संसार, वरनू, समूचे राष्ट्रकी समुचित तत्पग्ना,सामयिक सहायता तथा सच्ची सहानुभूति पर ही निर्भर है। हिन्दीभाषा तथा साहित्यके सदा खटकनेवाले इस अभावको दूर करने का कार्य हमने प्रारम्भ कर दिया है, किन्तु इसकी सफलता तो हिन्दी संसारके सहयोग तथा सहानुबूति पर हीनिर्भर है। 
 अभी तक हिन्दी संसार तथा विव्दनुमराड लसे जो सहायता तथा सहानुभुति मुंभ प्राप्त होती रही है-और जिसके लिये न जाने ह्रदयसे कितना अनुगृहीत हुँ- उसे देखते हुए नो आशा की जाती है कि अपने ज्ञानप्रकाशसे यह 'ज्ञान्कोश'अखिल भारतको शीघ्र आलोकमय कर देगा।