पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१०२

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कनिंगहम का ऐसा मत है कि अजमेर की स्थापना चौहान अथवा चाहमान राजा अजयपाल ने की। यह राजा १६ ई० के पहले हो गया है। कनिंगहम की फेह्ररिस्त के आधारपर ऐसा चिदित होता है कि यह शहर बहुत प्राचीन है क्योंकि फरिश्ते के लेखों में अजमेर के राजा का उल्लेख ६=४ ई० में मिल्ता है। महमूद गजनवीने सोमनाथ पर चढाई करते समय अजमेर को लूटा था।

राजापुताना गजेटियर में अजमेर की स्थापना का काल १४५ ई० और बसाने वाले का नाम अनमल का वंशज पहला चौहान राजा अज दिया हुआ है।

मोलसेन साहब का अनुमान है कि इस शहर का नाम अजमीढ होगा और उस्के बाद 'अजमेर' नाम पडा होगा। टाँलेमी ने इस शहर का उल्लेख १५० ई० में गंगस्मिर (Gangasmira) नाम से किया है।

जयचंन्द्रके ह्म्मीर महाकाव्य (१- ५२ ) में ऐसा लिखा है कि चौहान वंश के चाहमान के तीसरे उत्तराधिकारी अजयपाल ने अजमेर बसाया।

प्रबन्ध चिन्तामरि नामक ग्रंथ मे चाहमान राजाओं की एक सूची दी हुई है। उस्स सूची में चौहान वंश के चौथे राजा अजय राज को 'अजय मेरू दुर्गएरकः'कहा है। इस चौहान वंश का आरम्भ ६० ई० से हुआ है। अतः अजमेर शहर बहुत प्रचीन है। इस सम्भंध में ऊपर दिये हुए प्रायः सभी ग्रंथों हा एकमत है। परन्तु डाँ० जे० माँंरिसन साहेब ने चाह्मान वंश के विषय में लिखते हुए एक छोटी सी टिप्पणी दी है कि इस वंश का बीस्वाँ राजा अजयराज सल्हण ने 'अजय मेरू' नामक नगर बसाया। यह पृथ्वीराज विजय नामक पुस्तक में दिया हुआ है। इस आधार से ऐसा निश्चित होता है कि इस शहर की स्थापना उत्तर कालीन है। ११०० और ११२५ ई० में या इस्के लगभग अजय राजा ने राज्य किया होगा।

किया जाता है कि अर्णोराज का देहान्त ११५० और ११५३ ई० के बीच में हुआ होगा। इसलिये अर्णोराज के बारह्वी शताब्दी के दूसरे पद में और उसके पिता ने सन ११००-११२५ काल में राज्य किया होगा।

पृथ्वीराज विजय नामक ग्रंथ दूसरे पृथ्वीराज के समय में अर्थात १२ वीं शताब्दी के दूसरे पद में रचा गया है। हम्मीर महाकाव्य १४ वीं शताब्दी के अन्त में और फरिशते की पुस्तक १६ वीं शताब्दी के अन्त में लिखी गयी है। डाँ० माँरिसन साहेब का मत है कि इस पुस्तक के लेख और 'पृथ्वीराज विजय' में दी हुई चाहमनों की वंशावाली मिलति जुलति है। इससे यह निश्चित होता है कि इस ग्रंथों का प्रमाण अधिक महत्व का है।

प्राचीन भूगोल शाश्वेत्ता अजमेर शहर का उल्लेख नही करते। केवल प्रभावक चरित्र में इसका उल्लेख किया है। फरिश्ते के समय अजमेर चाहमान राजाओं की राजधानी होगा। पूर्व राजपुताने में इन राजाओं कि सत्ता छ्ठी शताब्दी से थी। इससे मालूम होता है कि फरिश्ते ने भूल से शाकां भरि के चाहमानों को "अजमेर का राजा" कहा होगा। इन सब बातों से सिद्ध होता है कि 'पृथ्वीराज विजय' का ही विधान सत्य है। यह विधान इस प्रकार है कि शाकाम्भरी का चाहमन वंशीय बीस्वाँ राजा अजय इसका संस्थापक