पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१०४

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काम में इसके उपयोग में अढचन पदती है। इसका संप्रक्त जलद्रव ( १००० भाग गर्म जल और १ भाग अजमोदल)विषैली फुडिया क्षत इत्यादि में मलहम पट्टी के काम में आता है।


अजमोदा - इसे अंग्रेजी में ( Celery Seed) कहते हैं। यह अजवाइन की एक किस्म है। इसके पेड वार्षिक होते हैं। हिन्दुस्तान में यह पेड अनेक स्थान में पैदा होता है। बंगाल में इसके खेती अधिक प्रमाण में की जाती है। इसकी ऊँचाई लगभग डेढ हाथ होती है, सफेद रंग के छोटे छोटे फूल आते है। साग, भाजी मसालों में भी अजमोदा छोडते है और अजीर्ण होने पर भी देते है। ( पदे - वनौषधि गुणादर्श)


अजयगढ - ( राज्य) यह मध्य भारत में बुन्देलखण्ड पोलिटिकल एजेन्सी के आधीन एक छोटी सी रियासत है। अज्ञांश २४'५- २५'७ और पूर्व रेखा० ७६५० से ०२१। इसका ज्ञेत्रफल ७७१ वर्गमील है। यह विन्ध्य परवत के भीतरी भाग में है। परवत और घाटियों से यह कई भागों में विभक्त है। इनमें केन और वर्मा नदी बहती है। यहाँ की वृष्टि की औसत इण्ञ्च है। अजयगढ के राजा छ्त्रसाल के वंशज बुन्देले राजपूत है। १७३१ में राजा छ्त्रसाल ने अपने राज के कई हिस्से कर दिये थे। उसमें से एक ३१ लाख का प्रान्त उसके तीसरे पुत्र जगतराज को मिला। जगतराज के मृत्यु के पश्चात उसके पुत्र पहाड सिंह और उसके भाई के लडके खुमानसिंह या गुमानसिंह से जगडा होने लगा।

आखिर में गुमानसिंह को बाँदा प्रान्त में तथा अजयगढ का किला मिलने पर यह जगडा तय हुआ। उसके पश्चात गुमानसिंह का भतीजा वख्तसिंह बाँदा की गद्दी पर बैठा। उसे १७६२ ई० में अलीबहदुर ने निकाल बाहर किया और वह दाने दाने के लिये तिरसने लगा। १३० ई० में जब बुन्देलखण्ड अंग्रेजों के हाथ में आया। उस समय उन्होंने वख्तसिंह की ३०८०० रू० की पेन्शन उस समय तक के लिये नियत कर दी जब तक कि उसे कोटारा तथा पवाई परगने की सनद मिली। उस समय अजयगढ का किला तथा उस के निकटवर्तों प्रान्त लक्ष्मण दौवा नामक एक प्रसिद्ध डाकू के अधीन था। देश में शांति स्थापित करना अत्यंत अवश्यक होने के कारण अंग्रेजों ने अपनी सार्वभौम सत्ता उसे मनवाने के लिये बाघित करके वह प्रान्त उसी के आधीन रहने दिया। परन्तु सन्धि की शतै का उससे पालन न हो सकने के कारण १०६ ई० में कर्नल मार्टिनडेल ने चढाई करके वह देश छीन लिया। इस प्रान्त का बहुत बडा भाग उस समय वख्तसिंह के राज्य में शामिल किया गया। १०१२ ई० में नयी सनद तैयार करके यह सारा मुल्क उसमें मिला लिया गया।

१०३७ ई० में वख्तसिंह की मृत्यु हो गई। इसका लडका माधवसिंह गद्दी पर बैठा, परन्तु वह भी बहुत समय तक टिकने न पाया। १०४६ ई० में उसके मृत्यु के कारण गद्दी फिर से खाली हो गई। उसके पस्चात महीपतसिंह गद्दी पर बैठा। किंतु १०५३ ई० में उसकी मृत्यु के पस्चात उसके पुत्र विजयसिंह को गद्दी मिली। परन्तु वह भी दो वर्ष बाद मर गया। उसे पुत्र न होने के कारण गद्दी को कोई वारिस न रहा और राज्य अंग्रेजों के देखरेख में आ गया। इसी समय गदर ( १०५७) शुरू हुआ। इस समय राजा की माँ ने अंग्रेजों से शत्रुता न कर मित्रुता का वर्ताव किया। इसलिये राज्य को जब्त न करके विजयसिंह के भाई रणजोरसिंह ( दासी पुत्र) को गद्दी का चारिस मुकर्रर कर दिया। १०५६ ई० में उसे गद्दी पर बैठाया। १०६२ ई० में रणजोरसिंह को गोद लेने कि सनद मिली। १०७७ ई० में 'सवाई' का खिताव वंशपरम्परा के लिये मिल गया। १०६७ ई० में उसे के० सी० आई० ई० का खिताब मिला। इसको ११ तोपों की सलामी का मान है। इसे १०६६ ई० में पहला पुत्र उत्पन्न हुआ था। उसका नाम राजा बहदूर भूपालसिंह था।

इस राज्य में पैराणिक दृष्टि से अजयगढ के किले के अतिरिक्त दो महत्वपूर्ण स्थन हैं। अजयगढ के उत्तर-पूर्व में १५ मील पर एक गाँव है। वहाँ पर एक बडा शहर स्थित था। उस शहर को ११६५ से १२०३ ई० तक चन्देल राज्य के अन्तिम राजा परमाल देव के प्रधान वच्छराज ने बसाया था। दूसरा स्थान गंज से दो मील पर स्थित नायना नामक गाँव है। इसे कुठार कहा करते थे और तेरहवी शताब्दी में सोहनपाल बुन्देले के समय में बडे महत्व का स्थान था। बहुत सी बातों से पता चलता है कि यह प्राचीन काल में बडा उन्नतशाली शहर रहा होगा और चौथी शताब्दी अर्थात गुप्त काल में बसाया गया होगा।

१६०१ ई० में राज्य की आबादी ७०२३६६ थी। उसमें ०३ प्रतिशत हिन्दू अर्थात ७०३६० है। शेष में ६ प्रतिशत गोंड है जो ५०६२ हैं। और ३ प्रतिशत मुसलमान हैं ये २३१४ हैं। इस राज्य की