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राजधानी अजयगढ़ है तथा इसमे ४८८ गाँव है। १६११ ई० मेॱ यहाँ की आबादी ७०६३ हो गई थी।

  स्थानीत जातियाँ - ब्राह्मण १११००, चमार ६२००, और काछी, बुन्देले ठाकुर, लोध, श्रहीर, तथा गोंड ३००० से ४८८० तक हैं। ४० प्रतिशत लोग खेती करके जीविका चलाते हैं और १७ प्रतिशत मजदूरी करते हैं। ५३ प्रतिशत खेती के योग्य जमीन है अर्थात कुल ४०९ वर्गमील जमीन में खेती की जा सकती है। उसमें से १० प्रतिशत पानी में है। १४४ वर्गमील जंगल है परंतु उसमें खेती नहीं की जा सकती है। ७६ वर्गमील जमीन ऊसर है। चना, कोदो, गेहुँ, जवार, वाजरा तथा कपास यहाँ की फसलें हैं। केन नदी में नहर का काम चल रहा है। कुछ समय पहले यहाँ पर लोहे की खानों की खुदाई का काम किया जाता था। परंतु आजकल यह खानें चंद हैं। किसी किसी स्थानों में हीरे भी मिलते हैं। बंदूक, तलवार, पिस्तौल यहाँ पर तैयार की जाती हैं। इस राज्य का कोइ मुख्य व्यापार नहीं है क्योंकि यह पहाड़ी स्थान में बसा हुआ है। कुल ७२ मील लम्बी सड़कें हैं। इनमे से २४ मील पक्की तथा ४८ मील कच्ची हैं। इस राज्य की आमदनी २३०००० रु० है जो कि कर ही से होती है। मुख्यातः यह कर तथा लगान से ही होती है।
   सेना - ७५ घोड़ सवार, ३५ओ पैदल, ४४० गो-लंदाज तथा ६ तोपें हैं। इसके अतिरिक्त ६८ पुलिस, २११ गावँ की पुलिस हैं। स्कूल कम संख्या में है और उनमें सौ सवासौ विध्यार्थी पढ़ते हैं। अजयगढ़ शहर में एक अस्पताल है। (इं० गाॅ० भाग ५।)
   अजयगढ़ शहर- मध्य हिन्दुस्तान। अजयगढ़ राज्य की राजधानी है। उत्तर श्रक्षांश २४५४ तथा पूर्व देशांतर ८०१८ पर स्थित है। १६०१ ई० में आबादी ४२१६ थी।
   आधुनिक राजधानी को 'नया शहर' कहते हैं। शहर के ऊपर किले की चहारदीवारी आकाश को छूती हुई मालूम होती है। यह किला बुन्देलखंड के उन आठ विख्यात किलों में से है जिनके बल पर बुन्देलों ने मुसलमानों की दाल न गलने दी। २८०० ई० में वाँदाके अलोबहादुरने यह किला ६ महीने घेरा डालने के बाद जीत लिया था। परन्तु १८०३ ई० में वह लक्षमरा दौवा के हाथ में चला गया और १८०६ ई० में उसे कर्नल मार्टिनडेल ने जीत लिया।
   किला 'केदार पर्वत' नामक पहाड़ पर स्थित है। और वह समुद्र की सतह से १७४४ फीट की ऊँचाई पर है। सबसे ऊपर के पचास फीट को छोड़कर बाकी भाग पर सुगमता से चढ़ सकते हैं पहले लेखों में इस किले को जयपुर दुर्ग कहा गया है। यह किला नवीं शताबदी में बनाया गया था। यध्यपि इसमें कोई सन्देह का स्थान नहीं है परन्तु अबुलफज़ल के अतिरिक्त और कोई इतिहासकार इसका उल्लेख नहीं करता। यह त्रिकोण बना हुआ है। पहले इसमें पाँच दरवाज़े थे परन्तु आजकल तीन बन्द कर दिये गए हैं। दीवारें तीन गज़ मोटी हैं, ऊपर कई पानी की टंकियाँ और तीन जैन मंदिर अब भी दिखाई देते हैं। किन्तु वे बिल्कुल टूटी फूटी स्थिति में हैं। वह १२ वीं शताब्दी के ढंग के बने हुए हैं। यहाँ चंदेल राजाओं के समय के (सन ११४१ ई० से १३१५ ई०) बहुत से शिलालेख मिले हैं। 
    इन पहाड़ों पर सागौन तथा तेंदू के बहुत से वृक्ष हैं। इस कारण किले का प्राकॄतिक सौन्दर्य और भी दर्शनीय हो जाता है। 
     शहर में प्रारम्भिक शिक्षा के लिए एक पाठशाला डाकखाना और दवाखाना है। जी० आई० पी० रेलवे का यहाँ एक स्टेशन है। वहाँ से भहारा जाने के लिए एक उत्तम मार्ग है। मोटर, तांगा, बैलगाड़ी इत्यादि द्वारा लोग वहाँ जाते हैं। नरैनी में डाक बँगला है आधुनिक राजधानी का नाम "नौशहर (नया शहर) है और जिस पहाड़ पर किला स्थित है उसके उत्तरीय भाग में यह शहर बसाया है (?आनार्ल्ड-गाइड १६२०)
     अजयपाल- (११७३-११८७ ई०) गुजरात के चालुक्य वंश के कुमारपाल के बाद का राजा। इसके बाप का नाम महिपाल था। कुमारपाल निसंतान होने के कारण उसकी मृत्यु के पश्चात उसके भाई का लड़का अजयपाल १२२६ ई० में गदी पर बैठा। (ब्धयाश्रथ काव्य तथा पाटन का अंकित लेख जो चेरावल में है देखिए)। कुमारपाल प्रबंध में लिखा है कि कुमारपाल की इच्छा अपनी लड़की के लड़के को राज्य देने की थी परन्तु अजयपाल ने षड़यंत्र रचकर विष प्रयोग द्वारा कुमारपाल की हत्या कर डाली। सुकृत संकीर्तन का लेखक लिखता है कि अजयपाल के दरबार में जो चांदी की छत थी वह सपादलक्षा (शिवालिक) के राजा के यहा से आई हुई नज़र थी। जैन ग्रंथो में इसका उल्लेख नहीं मिलता। कीर्तन कौमुदी में अजयपाल का नामात्र के लिए उल्लेख श्राया है और प्रबंधचितामणि के लेखक ने तो स्पष्ट शब्दों मेँ कहा है कि अजयपालने अपने चचाके