पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/११०

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चारीय-यशदके बदले दारीय बंगाइत का भी लघवकररगमें उपयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त दिव-अजोक्रत अमीनका संयोग भानल अथवा अमीन मुलक यौगिकसे करने से भी अजो यौगिक तय्यारर् हो जाता हैं। किंतु इसका धयान रखना आवश्क है कि इस अमीन अथवा भानलमें का परास्थान बिल्कुल निविकार होना चाहिए। दिव-अजोक्रत अमीनको तन्मुलक भस्म तथा उसके उद्धरिद के साथ गरम करनेसे दिव-अजो अरगुओं की पन: रचना हो जाती है और उस्से अंजो-यौगिक तय्यार हो जाता है। इस प्रकार तय्यार किये हुए अंजो-यौगिक गहरे रङगके होते हैं। परन्तु उसमें दारोद अम्ल अथवा भस्म मिलाये बिना वह रंगने के काम में नहीं आ सकता। चेतन(कार्वनिक) कारको के योगसे इसका रुपान्तर अजोक्सीयौगिक में हो जाती है। यदि लघवकर रग क्रिया की जाय तो उसका रुपान्तर हाइङो-अजो अथवा भस्म मिलाये बिना वह रंगने के काम में नहीं आ सकता। चेतन (कार्वनिक) कारकों के योगसे इसका रुपान्तर अजोक्सीयौगिक में हो जाती है। यदि लघवीकरण क्रिया की जाय तो उसका रुपान्तर हाइङो-अजो अथवा अमीनमें हो जाता है। आजो बेनजीनका सुत्र क ६,उ, ५, न: न, क, ६,उ, ५, है। नत्रवेनजीन की लघवीकरण किया में यशद चुरर्ग इत्यादि के प्रयोग से यह तय्यार हो जाता है। इसकी लघवीकरण क्रिया के लिये दरीय-वंश हरिदाका भी प्रयोग होता है। इसका सिद्धान्त नीचे दिया जाता है-नत्र बेनजीन, उज्ज, अजोवेनजीन पानी २क,६ऊ,५ नत्र २+४उ२=क६,उ५ न:नक६उ+४उ२ प्र अजो वेनजीनका अल्कहलके प्रयोग से यदि मरिभ तय्यार किया जाय तो वह नारग्घ अथवा लाल रङगके चपटे टुकडे होंगे। इनका द्र्वएंक ६=श और कथानांक २६३ श होता है।अमीन-ऑजो-यौगिक-यह केसरिया अथवा लाल बर्गका पदार्थ होता है। वहुघा यह मगिभ रुपमें शीर्घ ही होते हैं। इनकी लघवीकरग किया शीर्घ ही की जा सकती है। अनिलिन यह अथवा कोलतार इत्यादि द्वारा तय्यार किया हुआ कार्वनिक (चेतन) पदार्थ यदि गरम किया जाय तो इन्दुलीन 'इन्दुलाइन' तय्यार होती है। इस वर्गके मुखय तत्वों का वर्गन संद्प्त में नीचे दिया जाता हैं:-अमीन अजो-बेनजीन दिब-अजो अमीन -बेनजीनके अगुकी अन्तस्थ रचनसे तय्यार होता है। इसके चकत्ते पीले चपटे और सूईके आकारके होते हैं। इसका द्रवगांक १२३श होता है। नव अजो वेनजीनका अमीनिया गन्धकिदके साथ लघकरगा से अजोबेनजीने तय्यार होता है। अमीन अजो-बेनजीनका बंगस हरिद के साथ लघवी करगा से उसका रुपान्तंर अनीलिन और मित भानल द्व-अमीन में हो जाता है। दिव-अमीन-अजो-वेनजीन (क ६ उ ५ न २: क ६ उ ३ (न उ २)के साथ दिव-अजो-बेनजीन-हरिदकी क्रियासे मित भानलिन-दिव अमीन नीचे लिखे अनुसार तय्यार होता है- दिव अजो बेनजीन हगिद मित- भानलिन दिव अमीन क ६ उ ५ न: न ह+ क ६ उ ४ (न उ २) २ दिव-अमीन-अजो-बेनजीन उद्धरात्म क ६ उ ५ न: क, ६ उ ३ (न उ २) २*उ,ह इसके अत्म द्रवमें रक्त वर्गके होते हैं। इसका उद्धरिद का पीला तथा नाङगी ग्ङ इत्यादि क्रिसोइ डाइन नमसे बेचा जाता है। ऊन अथवा रेशमको पीला रंगनेमें यह काममें आता है। वि-अमीन-अजो-बेनजीन (मेटा अमीनबेन- जीन-अजो मेटा फेनेलीन डाई अमाइन विस्मार्क व्राउन इत्यदि)(न उ २ क ६ उ ४ न २ क ६ उ ३ (न उ २) २) से अर्थ है। मित अमीन बेनजीन-अजो-मितभानलीन दिव० अमिन ये पदार्थ मित-भानिल नव अत्म के साथ प्रयोग करने से तय्यार होता है। मित भानिल दिव्-अमीन उद्धरिद में सिन्धु नवयित का द्रव डालने से हलका बादामी रङग तय्यार होता है। जैसे मित-भानलिन दिव अमीन उद्धरिद -मित भानलीन (न उ २) २) उद्धारात्म विस्मार्क ब्रउन-(न उ २) क ६ उ ४ न: न क ६ उ ३ (न उ २)२+उ,ह, दिव-अमीन अगुमें से एक अगु ऑजो संघ हि ऑजो हो जाता है और उसीके दुसरे अगुके संसर्गमें आने से यह ऑजो रङग हो जाता है।