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4.९२ पान शापारा -1 नीतिके अनुसार वाकू प्राप्त करने और मध्यएशिया केवल नाम मात्रको रह गया। में प्रवेश करनेको तय्यारी तुर्किस्तानने श्रारम्भ । अटक जिला---पंजाब प्रांतका यह एक कर दी। उनसे युद्ध करनेके लिये तथा बाकूकी जिला है। इसका क्षेत्रफल २२ वर्ग मील है। अरमेनियन फौजकी सहायताके लिये जनरल इसके पश्चिम और वायव्यमें सिन्धु नदी, वायव्य इन्स्टर ह्वीलके नेतृत्वमें एकब्रिटिशफौज मोसोपोटे : सीमाप्रान्तमै कोहाट और पेशावर ज़िला, ईशान्य मियासे भेजी गई। महासमरकी तहकृवी सन्धिके में इसी प्रान्तका हजाग जिला, पूर्वम गवलपिंडी, अनुसार तुर्की और जर्मन सेना इस भागको छोड़ आग्नेयमें झेलम, दक्षिणमें शाहयूर और नैऋत्यमें कर चली गई और ब्रिटिश फौजने वाकू पर अपना मियाँवाला जिला है। तल-गंगकापठार समुद्रतलसे अधिकार स्थापित किया। वहाँ पर शासन- १२०० फीट ऊँचा होनेके कारण दूसरे 'भागोंकी व्यवस्था ठीक करने के लिये तथा व्यापारियोंको अपेक्षा इसकी श्राबहवा सर्द है। अटकके पठार, तेलोके कारखानोका ठीक ठीक प्रबन्ध करने, जहाज जंगलके बालुकामय प्रदेश, तथा मरवंदकी छोटी बनाने, बैंक खोलने, डाक, तार रेल जारी करने, छोटी पहाड़ियों पर अधिक गरमी पड़ती है। पुलिस विभाग, न्याय विभाग, इत्यादि स्थापित । यहांकी दृष्टिकी वार्षिक औसत १७ से २४ इञ्च करने में ब्रिटिश अधिकारियोंने बड़ी सहायता की। : तक है। इससे इस राज्यमें शांति तथा सुव्यवस्था स्थापित इतिहास---इसका और रावलपिंडी जिलेका हो गई थी, किन्तु १६१६ ई० के अगस्त मासमें इतिहास करीब करीव एक है। यह बुद्ध के समय ब्रिटिश-सेनाके चले जानेके बाद यहाँ फिर गड़बड़ से विख्यात था। उस समयके मुख्य खण्डहर शुरू हो गई। . अब तक हसन अब्दुला गाँव इत्यादिमें पाये जाते १६१६ ई. के जनवरी महीने में जो सन्धिपरि- है। एक समय यह तक्षिला गज्यके अधिकारमें षद्की बैठक पेरिसमें हुई थी उसमें काकेशिया था। मुहम्मद गजनवीने आनन्द-पालका पराभव प्रदेशकी ओर बहुत कुछ ध्यान दिया गया था। अहिन्दके पास किया था। तत्कालीन अहिन्द परन्तु वहाँके लोक सत्तात्मक राज्याने सीमाप्रान्तके झटकके समीप ही था। झगड़ोंको परस्पर ही निबटाने का निश्चय कर जनसंख्या--१४२१ ई. में इस जिलेकी जन लिया, और उन लोगोको हस्तक्षेप करने न दिया। संख्या ५१२२४६ थी। जनसंख्याम से फी सदी भविष्यमें झगड़ा रोकने के लिये एक हाई कमिश्नर 8. मुसलमान है। यहाँ पंजावकी भिन्न भिन्न नियुक्त किया गया। बातूम जार्जियाको फिरसे जातियाँ बसी हुई है। यहाँ के निवासी पश्तो प्राप्त हुआ। किन्तु सेबिर्सकी सन्धिसे अनाटो- भाषा बोलते हैं। लियामें फिर बड़ी हलचल मच गई, और उसका खेती-इस जिलेके उत्तरमै चाँचका चौरस प्रभाव अज्हरबैजान पर भी बहुत पड़ा। मित्रराष्ट्र मैदान अत्यन्त उपजाऊ है। सोहान और दूसरी (Allier ) से तुर्को तथा रूसी बोलशेविको नदियोंके किनारकी जमीन भी उपजाऊ है। अन्य दोनों ही का झगड़ा था। श्रतः कुछ कालके लिये | स्थानोंकी भूमि उपजाऊ नहीं है पर यहाँकी बस्ती ये दोनों मिल गये और मित्रराष्ट्र के हाथसे इसे कम होनेके कारण वृष्टि कम होने पर भी यहाँ फिर निकाल लेनेका प्रयत्न करने लगे। अकाल नहीं मालूम पड़ता है। यहाँकी मुख्य १६२० में रूसने वहाँका खतन्त्र राष्ट्र नष्ट कर पैदावार तो गेहूँ है, पर चना, बाजड़ा, इत्यादि सोवियेट राष्ट्र स्थापित किया। इसके बाद जब अनाज भी पैदा होते हैं। यहाँ पर घोड़े उत्तम तातारियोने वहाँ विद्रोह किया तो १५००० तातारों होते हैं। का बोलशेविकोने नाश कर डाला। आगे चलकर अटक जिलेमें संगमरमरकी खल तथा अनेक तुर्किस्तानकी सहायतासे जार्जिया और एरिहान अन्य वस्तुय तय्यार की जाती है। काला पहाड़ के खतन्त्र लोक-सत्तात्मक राज्योंका भी इन्होने में कोयला मिलता है। फतेहगंजके पास मिट्टीका अन्त कर दिया। तुर्किस्तानको इसके फलस्वरूप तेल निकालनेके पाँच कुएँ हैं। आईनान, कार्स, और आमनियाका कुछ भाग प्राप्त । व्यापार और निजारत-इस जिलेमें कोई भी बड़े हुश्रा। और रूसने ट्रान्स-काकेशियाका वह भाग महत्वका कारखाना नहीं है। यहाँ रेशमी तथा जो युद्धके पहले उसके आधीन था अपने अधिकार सूती कपड़ा बुना जाता है। इसके अतिरिक्त में फिरसे कर लिया। अजहर बैजान, जाजिया लकड़ीके काम, लोहके वर्तन, ताला, चटाइयाँ, और एरिह्वानके खतन्त्र-राज्यका अस्तित्व अव सावुन इत्यादि वस्तु यहाँ बाहरसे आती है।