पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/११७

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तार्थ वेस्टर्न रेलवेकी एक शाखा इस जिलेके उत्तर भागमें होकर गई है।मध्यभागसे खुशहाल गढवाली एक शाखा गई है।पश्चिम भागमें मारीअटक शाख कम्बलपुर से मुलतानकी और गई है।रेलवे लाईन से सटी हुई दो सडकें,हसन अब्दाल अबटाबाद और रावल पिंडी खुशहालगढ तक पक्की बनी हुई हैं । राज्य व्यवस्था अटक पिंडीघेव फतेहगज्ज और तलगंगमें तहसीलदार और नायब तहसीलदार रहते है।कम्बलपुर जिलेके मुख्य स्धान है।यहाँ डिप्टी कमिअर रहता है। पिंडी और हजारामें म्युनिसिपैलटीयाँ हैं। अट्क नोटिफाईड एरिया है।और दूसरे स्थानों का शासन जिला बोर्डके हाथोँमें है। ९६०२ई० की जनसंख्या के अनुसार प्र्तिशत ३६ मनुष्यों को पढना लिखना आता था।उनमें से मनुष्यों की संख्या तो ६४ प्र्तीषत थी और स्त्रियों की ४ थी। अपटक (नदी) सिन्धु नदी को पष्चिमीय घारा को ही कदाचित यह नाम दिया गया होगा।अटक शब्द का प्र्योग अबकबरने किया था और कदाचित इस नदी को पार न कर सकने के कारण ही(अर्थात वहाँ आने पर अटक जाने कारण)यह नाम दिया गया है।कुछ लोगोंका मत है कि वह हिन्दुस्तनी सीमा है इसी कारण से उसको यह नाम पूर्वकालसे दिया गया होगा। देश की धार्मिक सीमा भी इसको मान लिया गय था। धार्मिक ट्ट्प्टिसे पुराने जमाने में बिदेश जाने से धर्ममें बाधा पडती थी।अतः इस नदी के पार जाने वाले हिन्दू को भी दोप लगता था।और प्रायष्चित करना पड्ता था।इस कारण से भी इसका नाम सम्भवतः अटक पडा होगा। किन्तु निष्चियरूपसे यह नहीं कहा जा सकता कि अट्क हिन्दुस्तानी की सीमा कव स्थापित हुई। अवेस्ता कालमें हम हिन्दव्ः का उळेख मिलता है और यूनानियोंने इणिडया नाम से उळेख किया है।उस समय से ही उन लोगों की यह कल्पना थी कि जिस भाँति यह धार्मिक विचारों से भी यही मर्यादा थी। अटके के पार का देश अपने देश के परे समभ्क्त जाता रहा है। ९७६०ई० में पेशवा बालाजी बाजीरावने गंगाघर यशवंत को पत्र में लिखा था कि दत्ताजी सींघिया इत्यादी की सहायता लेकर उनको चाहिये कि अब्दोलीको जीत कर अटक नदी के पार खदेड दें (राजवाडे खं ०९-९५६२४५) इससे स्पष्ट है कि मराठों ने अपने देश की सीमा खैबरदर्रा केटा इत्यादी न समभ्क्त कर शत्रु को केवल अटक पार ही करना चाहा। जिस प्र्कार असितु हिमाचल सम्पूर्ण भारत के लिए व्यवहार किया जाता हैउसी भाँति अटकसे रामेश्वर तक भी समभ्क्त जाता है।९७३२ई० में बालाजी बाजीरावने पिलाजी जाघवको लिखा था कि निवाब और मराठों का देश अटकसे रामेश्वर तक है। अटक गाँव -यह गाँव ,पंजाब प्रान्त में अटक जिले के अटक ताळुके का मुख्य स्थान है। यह नार्थ वेस्टर्न रेलवे का स्टेशन है।यह कलकत्ते से ९५०५ मील बम्बई से ९५४९ मील और करची से ७७९ मील दूर है। यहाँ की जनसंख्या ९३०९ई० में ९७२२ थी।काबुल और सिंध नदी के संगम के थोडा नीचे सिंघ के किनारे पर अटक का किला है।इस किले के सामने ही कमालिया और जला लिया नामक पत्थरकी चट्टनों में से होकर सिंघ नदी बहती है।अकबर के समय में दो पाखंडियों को यन चट्टानों पर से ढकेल दिया गया था। एसा कहते हैं कि अटकसे सोलह मील पर ओहिंद में नदी के ऊपर नावों का पुल बनाकर सिकन्दर इस नदी के पार आय था।अपने भाई हकीम मिरज़ाके आक्रमणों से वचने के लिये अकबरने ९५७९ई० में यह किला फिर से बनवाया और उसका नाम अटक बनारस रखा। दूसरी दंत कथा है कि इस नदी को पार करना कठिन है अर्थात अटकाव करती है। इसलिये अकबर ने इस किले का नाम अटक रखा और नदी पार कर उसके पश्चिम किनारे पर उसने खैरवाद याने रताका स्थान स्थापित किया। रघुनाथ राव ने चढाइयाँ कर मराठों की सत्ता अटक तक बढाई। ९७९२ई० में रणाजीर्तासने इस किले पर हमला किया था। पहले सिक्ख युद्ध में अग्रेज़ों ने यह किला ले लिया था परन्तु दूसरे युद्ध में वे उसे कायम न रख सके। और वह सिक्खों कि हाथ में आ गया किन्तु युद्ध समाप्त होते ही वह किला फिर से अंग्रेज़ो को मिल गया।९७८३ई० में सिंध पर रेलवे का पुल और दूसरा रासता तैयार हुआ। अटक में बेगम की सराय नामक धर्मशाला थी।इस ध्रर्मशाला की पंजाब सरकार ने ३०००० रू० ख्रर्च

कर मरम्मत करवाई है।