पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१३०

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रुसके कब्ज़ेमे था। तत्त्प्ब्धात यह तुर्किस्तानके हाथमे आया। बाल्कन युद्की सन्धिमे तय हुआ था कि तुकर्क इसे छोड दे पर तुर्क ने लडाई जरी रखी और उस पर से कब्ज़ा न हटाया। बिगत महायुध मे तुर्कोके हाथसे पुन्न यह शहर चले जाने हकि नीयत आ गयी थी परन्तु यह अब भी तुर्कोके अधिकार्मे ही है।

 अद्तिया-किसी व्यपार मे लेन देनके कामो के लिये, अपने ही कार्खनोका माल, अथवा गोदमोमे भरा हुआ माल खपानेके लिये, या दुसरे दुसरे कामोमे जयाबदेही सिर पर लेकर अपनी औरसे तीसरे आद्मी या दुकनके साथ व्यपार चलाने या करने के लिये बिचवैई। मनुधपोकी आवशयक्ता होती है। एसे मध्यप्रस्थ आद्मी को श्रड्तिया, गुमाश्ता या दलाल केहते है। कनूनी भाशा मे एसे व्यक्तियोको जो, दुसरे मनुश्य का कार्य करने के लिये या किसी अन्य व्यक्ति से लेन - देन करने के लिये मालिकका प्रतिनिधि नियुक्त किया जाय, गुमाश्ता केह्ते है। जिस व्यक्ति के लिये व्यापार किया जाता है अथवा गुमाश्ता जिसका प्रतिनिधि होता है वह मालिक (मुख्य व्यक्ति) केहलाता है।(धारा१=२ एकार्नामा)।
  व्यपारी दलालोकी किस्मे-इनका मुख्य कर्तव्य मालिकके भेजे हुए अथवा सोपे हुए मालको दलाली लेकर बेचना है। दलाल का दुसरा काम मालिकके लिये आवश्यक माल खरीद कर उसके पास भेजना है। इसी कार्य के लिये दलाल नियुक्त किये जाते है और उनके नाम मुतार्नामा भी लिख दिया जाता है अथवा मालिकके जितने काम निकाले उन सबको पूरा करने का अधिकार उस्को मिल जाता है। इसकी मियाद नियमित काल अथवा मालिकके मुख्तार्नामा रध करने तक र्रेहती है। सभी दलाल अध्तिये नही होते।
 बम्बैईमे विदेशोसे व्यापार आड्तोके ही मार्फत होता है। ये अड्ते श्रडितिया अथवा साहुकारोकी होती है। विदेशी व्यापारियोको बम्बैईके सभी व्यपारियोका परिच्य तथा ग्यान नही होत इसी कारन अड्तोहकी आव्श्यक्ता होती है। ये आड्ते अपनी जिम्मेदारी पर माल खरीद कर बाहरी व्यापरियोके पास भेजती है। यह व्यपार बमबैई मे अधिक प्रचिलित है। ये लोग प्रति सैकडा कमीशन लेते है। इसके अतिरिक्त सूद भी लगाते है। ध्रम खाते भी प्रति सैकडा काट लेते है। इस प्रकारके खातो क नियन्त्रन नही होता। इन अड्तियोमे से महराश्त्रिय अड्तिनिने एक असोसीवेसन स्थपित किया था परन्तु उसमे व्यपार करने वाली आड्तोका परदेशी व्यापारके अन्तरगत है।
 अडॉई-कुछ्मे मोवीके अधिकर्मे यह एक छोटा सा नगर है। यहा किलेबन्दी की हुई है। यहा की जन्सनख्या लगभग ४४०० है। कपास का व्यापार यहा बहुत होता है। नगरके उत्तर ओर दो मील की दुरी पर काटी लोगोकी छिपनेके लिये छोटी छोटी गुफाये है।
  अरिन मान्ड्व्य- यह मन्ड्व्य ऋशिका नमस्तर है। पुर्वकालमे इस नामके एक निश्च्य यथा सर्व्धर्मग्य ऋशि हो गये है। इन्होने बहुत समय कमनाहारित होकर तप किया था। एक दिन कुछ चोर चोरीका बहुत सा माल लिये हुए छिपनेके लिये इनके यहा आये। राजकर्मचारियोको इनके आश्रम पर सन्धेह उत्पन्न हुआ। अत: वे अश्रममे घुसकर चारो ओर खोजने लगे। वहा पर उन्हे चोर ओर चुराया हुआ धन दोनो ही मिल गया। उस आश्रम्मे मिलनेसे राजको ऋशि पर भी सन्धेह हो गया। अत: राजाने चारो के साथ ऋशिको भी सूली पर चडा देने की अग्या दे दी। ऋशि ने योगाअभ्भ्यास से पराग-सयम करके बेदाध्यन करते हुए तपास्स्या आरम्भ करदी। अन्य ऋशियोने सितिथि सम्भाल ली और माएड्व्य ऋशि क लिये अन्न दुखी हुए। तब वे पक्शिरुप धारा करके राजा के पास आए ओर माएड्व्यऋशिके दन्ड कि आग्या राजा से बदलवाली। तादन्तर वह ऋशि के पेट्मे घुसा हुआ शूलको तोड डाला। किन्तु कुछ भाग भीतर ही रह गया। इसीसे इनका नाम ऋशि माएड्व्य पडा था।
  बाल्यावस्था मे ऋशि ने एक चिडियाको खेल करते करते लकडी भोक दी थी। यमधरम ने इस अपराधके लिये एसेहो कटोर ड्की ऋशि क लिये योजना की थी। ऋशि ने इसपर क्रुध होकर राजाको अगले जन्म लेने के लिये श्राप दिया क्योकि राजा ने अल्प अपराध के लिये इतना कटोर दन्ड की योजना की थी। उसी समय ऋशिने नियम बना दिया कि १४ वर्श्की अवस्था तकमे किये हुए अप्राध का दड नगरिको को न मिला करे।