पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१३३

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वाधा पडाती है|इस सम ज्ञातीयतव्य अथवा क्षविचिष्द्न्न महत्वमान की कल्पनासे (थीयरी ओफ फ्लक्शन्)वहन सेधान्त की नीव पडी है|इसी वहन सिध्द्न्त् पर ही आधुनिक गणतशाख निभ्ंर है |समजातीयस्व की कल्पना से तथा उपरोत्त प्रकर के गणतशाख को सहायता से जड्पदार्थो के सम्बन्ध बहुत् सी बाते सिद्ध् की जाती है|

  ज्ञड्वदार्थ की अणवाक्त्क रचना-इस सम्बन्ध में बहुत से प्रयोग सिद्ध प्रमाख् एकचित्र हो चुके है कि जडपधार्थ अविच्छिन्न महत्वमान के समान सम्झातीय गुयेयुक्थ नहिन हैन बल्कि जड्पधर्थ कि रछना करोउ से ही हुई है। विशान्शाख कि द्रिष्टि से पधार्थ के सनब्से छोटे कख को हि अणु केह्ते है|जिस समय राशायनिक क्रियन्शो के छित्रन किया जाता है उस समय अणु का विभाग परमाणु में केह्ते है| जिस समय छिघुत्रनिरीअण परमाणु का होता है उस समय परमाणु का विभाग अतिपरमाणु मे किया जाता है|अणु  के समुथय ले हि जड्पधर्थ बने हे और  कल्पना सही से सब विधुधितर और अणु रसापनेतर कार्यकर-भाशा के स्पश्तिकरन होना चाहिये|इससे वायु में पधर्थो के विषय में बहुत सुग्मता से स्पश्तिकरन किया जाता है| वायु का गति विपक्श्यक सिद्धन्थ (कैनेटिक् थीयरी ओफ ग्यासस)द्वारा येह परतिपदन किया जाता है कि जडपधर्थ अणुसमुखय से बने है| इसी सिद्धन्त से शनन्ता विभाग-सिधान्थ वादियॉँँ के मत खीड्त होते हे। और् बिना इसकी सहायता लिये हि विधूथ तथा प्रकाश की सहायता हो से पधर्थो की शरवाथ्मक रछन सिफध की जाती हे।
    अणु का भकारमान-लार्ड्रले द्वारा किये हुए कुछ प्रयोग से अणु के  स्खकर्मन के विशय में अनुमान किया जा सक्ता है। पेह्ले पानि पर तेल कि बहुत पत्लि भिल्लि फैला कर येह देह्क गया है कि उस्से तैर्ते हुए कापूर पर परिरागम होइत है। इस्से येह पता चला कि जब तेल का थर १०६/(१०) सेन्तिमैतर तक मोटाइ का होता है तो उसपर् विशिट पारिखाम होत है। किंतु यदि तेल का थर  =१/(१०), सेन्टिमीटर् मोटाइ का होता है वैसे विशिस्ट परिखान नही होता। इससे येह सिध होता है कि तेल के इन दो भिन्न भिन्न मोतैयोके कारन फल भीन्न भिन्न होत है। यदि इन्की भिन्नत के फर्ख पर विचार किया जये तो स्षट हो जयेगा कि जब तेल का थर जब बहुत पतला होता है तब उस्की अराबात्मक रछ्न कि शोर ध्यान देन पड्ता है। इससे यह स्पष्ट हो जयेगा कि क्षगु का क्षाकारमान१/(१०)२ सेन्टिमीटर् पेर होगा। इस अनुमान् की पुष्ती अन्य प्रयोगो से भी हुइ है। टमस य्ंग ने सन १=४ ई० मे का अणु श्राकार्मन जान्ने के लिये उप्रुक्थ धङ के मतनुसार यङ का यह प्रयोग सबसे आरम्म में हुआ था। सर्र्रिक तोर्र्से रगिरिगत कर्के उसने वह अनुमान किया था कि अणु का एक दूस्रे पर होने वाला अकाप्र्ख एक इन्छ के १/१०००००००० अंश का होता है। यह ध्यान में रख्न चहिये कि यह अनुमान १/(१०)^२ सेन्टिमीटर् का दजे है। इसी के आघार पर सन १=०४ ई० में आघुनिक आन्येपर्ग की नीव पड गयी थी। इसी भांति उस्ने ग्गकिथ से यह सिध किया कि पानि मे के अणुका व्यास य उस्का श्रुन्तर १/१००००००००० से १/१०००००००००० तक होन चहिये अर्थाथ १२४/१० से ७२४/(१०) सेन्टिमीतटर् तक होना चहिये।