पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१३५

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है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि घनपदार्थके अणु भी सुक्षम प्रत्येक मै गतिमान है। प्रत्येक आरुग्त चन्च्ल होने से आपस मै ये तक्रते है। अपस कि तकार और आकर्शन शक्ति द्वरा ये अणु अपनी पुर्व स्तिथि मै थोडे ही समय मे पहुंच जाते है। ऊष्णतासे पदार्थ फैलते है और उसके अमाव में सिकुडते है। इससे यह कहा जा सकता है कि कोइ भी पदार्थ् ज्यो ज्यो ठण्डा किया जयेगा उस्से अणु को गती भी स्तब्ध होती जायेगी और अतयन्त शीत प्दर्त के अणु गती स्तब्द होगी। और उस समय तप्मान २९३ (सेन्टिग्रेड) होता है । इस्से कम तप्मान होने से स्तभ्ता असम्बव है। इस उप ताप्मान को मुलय शून्यांश (आब्सोल्यूट ज़ीरो) कह्ते है।

 अब हमे यह देखना चाहिये की घन्पधार्थ अणु रहते है तब उन्के जो वेशेष गुणधर्म दिखाई देते है उनके अणु-सिध्दान्त-द्वारा किसी भाँति निण्रय किया जा सकता है। एसा मान लीजिये कि दो पदार्थ २७३ सेन्तिग्रदे तापमान पर है अर्थाथ उन्के अणु बिल्कुल स्तभ्ध है। इन दोनो पधर्थो को एक दूसरे पर घिस्ना शुरु किया जाए। तब इन्की सतह्के अणु मे गति प्राप्त हो जयेगी और घिस्ने से उष्ण्ताफा प्रादुर्भाव् होगा। आरम्म में यह ऊष्णता पधार्थो कि सतह पर रहेगी। परन्तु सतह के अणुओ में गती प्राप्त् होते ही उन अणुओ के पास के थर को भी गती प्राप्थ होगी। इस भाति जब समीप के अणु गतिमान होगे तब समस्त पधाथो मे धीरे धीरे उष्णता फैल जायेगि। इस् भांति के तापप्रसर्णको ताप चालकता (कंडक्शन)कह्ते है। उष्ण पधार्थ के अणु हिल्ते रह्ते है। निश्चित उष्ण्तामान पर उन्की गती के लिये निश्छित्त स्थान भी चाहिये। ज्यो ज्यो तापमान बढाया जायेगा त्यो त्यो उन्के आन्दोलन के लिये अधिक स्थान कि भी आवश्यक्ता होगी। नित्य व्यवहार मे देख्ने से येह स्पश्ठ है कि ऊष्णता से पधार्थ का प्रसरण होता है। इस्के विपरीत यह भी देह्क जाता है कि द्घाव (प्रेशर) इत्यादिका उप्योग कर्के पधर्थो को सिकुड्ने से भी उष्णतामान बढ्ता है। 
  जिस प्रमाण मे पधार्थका उष्णतामान बढाया जायेगा उसी प्रमाण मे अणु आन्दोलन के लिये अधिक स्तान भी होना चैहिए। यदि किसी पधार्थो को हद दर्जे से भी अधिक गरम किया जाये तोह उस पधार्थ के अणु इत्नी शीघ्र गतै से हिल्ने लगेंगे कि फिर उनका अपनी पूर्व स्थिति मे आना सम्भव नही। इस भाति बदल्ने वालि जो अणुओ कि अवस्था होती है उस अवस्था को "प्रचाहि अवस्था" कह सक्ते है। यदि कोइ अणु आधिक प्रामाण मेइ आन्दोलित होने लगता है तो वह अपनी मध्यस्थिथि (सेन्टर) छोड्कर दूसरी ओर चला जायेगा। वहा पर दूसरे अणु संघ के कारण वह अणु नये आकर्शन बन्ध से बन्ध जाएगा, किन्तु यदि उस पधार्थ के पृष्ट भागके समीप किसी अणु को अधिक गती प्राप्त हुइ और वह गति उस पधार्थ में से बाहर निकल्ने कि ओर ही भूकी रहो तो वह पधार्थ अपने चारो तर्फाके अणुबन्ध से निकल्कर उस पधार्थ के बाहर चला जायेगा। इसि भाति यदि बहुत से अणु बाहर जाने कि क्रिया होति रहे, तोह उस पधार्थ के अणु कम होते जायेंगे। इस तराह पधार्थ मे से अणुओ के बाहर निकल्ने कि क्रिया को 'चाष्पीभ्वन'(इवापोरेशन) केह्ते है। 
  जब सामान्य उष्णाता और दबाव (नारम्ल टेम्पेरेचर और प्रेशर) होता है तब पधार्थ के वायु का घनत्व (डेन्सिटि) उस पधार्थ के घन्स्थिति मे रेह्ने के घनत्वका एक सहखान्श होता है। इससे गणितकि सहायता से येह सिद्ध किया जा सक्ता है कि जड पधार्थ की घण्स्थिति मे रेह्ने के समय उस्के अणुओ मे जित्ना अन्तर रह्ता है उसका दस गुणा वयुरूप स्थिति मे होने से हो जाता है।
 अब येह बतलाया जायेगा कि वायु (गेस) के अणु सम्बन्ध मे विज्ञानवेताओने अब तक कौन कौने प्रयोग सिध्द अथवा गणिथ सिद्ध ज्ञान प्राप्थ किये है। इन्मे अणु का और्सत व्यास प्राय: २=/१०^७ सेनटिमीटर रहता है। यदि यह अणु बिल्कुल चोकोर हो तो उन्के दो अणुओ मे के अन्त्रिक्थ और सत लगभग २६/१० सेनटिमीटर होती है। जब सामान्य उष्णतामान और दबाव होता है तब एक परिमाण के घन मे अर्थाथ एक सेनटीमीटर के लम्बे चोडे और उचे धन मे करीब २,७४*१०^२१ अणु होता है। २,७४*१०^२१ अर्थाथ २७४ के आगे २४ शून्य है। यह स्ंघ्या पराघ कि अपेग्या दो स्थल्