पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१४

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यँस्मर

१५६२ दै० मैं अँन्धपुरकै जसां-पूर्वमै जो मीशार मैडाग नामका एक बढाशहर अषचत्रट्वेकै हाथ लगा । इसी समय अफबाझे भात्तषाप्रान्नकै सेना- पदिपै पथिकों चढाई करके दीजागड़ र्थाभट्वे पुरहाल्यपुर पर भी अधिकार कर लिया । इसके बाद उसने रावलपिंडी जिलेके रैशान्यभायामैं गाने बाले गाजर खोर्गोकों तथा कात्रुसाकै षखवेकौ दबाया । इसी समय एक बेव्रजनक घटना दुई । मालवाप्रस्नामैं पाजषहाद्रुर नामक सनंदश्यनेर्शा विद्रोह मचाया था. उसे दूवानेकै लिये अशापृने अपनी दाईकै पुत्र आदममाँर्का भेजा । आदमचाँने षाजपहादुरकें। परास्त किया परन्तु स्वयं उसने महुत्तसै अन्याचार किये । उसने सारी लुट अपने

लिये रष लो र्थार सऱथही साथ वाजवहादुत्यों _

ज़नानखानेशे भी अपने पास रण सिया । जब्र अकधादृकौ यह मालूम हुआ ना उसने उसे बरखास्त कर दिशा इसपर अश्चमसाने. यह सम-

झकर कि बम१च्छाहका मन्दी शमसुद्दीन मेग नाश .

करना चाहता है, उसे जानते माग' डाला । यह सुनकर अकास्ने ब्राएश्यक्तिछराषर से गिस्थाकर उसके प्राण ले लिये 1 ( मई सन; ११६२ रै० )

म्नन् १धु६४ ई० मैं नुनाशश किला जो पूर्वीय प्रान्यौका प्रवेशद्वार समझा जाता धा-आदिलवंश के एफगुखामकें में था । उसने यह किला ब्रशाखों दागों सौप दिया । चुनार हाशमै आ यागेके क्याट्वेंण मुगलोंने चौरागड़की रानी को पराजित्तकाकेंनरसिंहपुरजिलाचौंर होरांगस्त्रग्यका कुछ भाग सरलतासे ले लिया । सन् ११1६५। दें० की

यारमीर्में थकारने आगरे का बिन्ता बाँधना आय ३

किया और बधू खास रुपया सर्च फब्बनेकें पधातू आट वर्योंमैं नहकिला तैयार हुआ । इसी वर्ष षयाँ- ऋतुओं जोंनपुरमै उव्रपैक सस्वारय१ने विद्रोह खड़।

किया । अफपरने बिन्नौपृ दश दिया । रस चढाई .

मैं णदप्ताहकै सेनापतिर्योंने बिहारकैरोहनास किले यर अधिकार जमाया तथा पिदारुके राजाके षकीणगेआकर पाक्याहकौ नजराने हिये 1 आरू भरके आगेकै दो वर्ष विद्रोह एधाकर राज्यमें भाँति रुथापिस फरनेमैं ही बीते :

म्नन्१५६८रै० मैं ब्रपस्त्रस्ने राजपुशाने पर पकाई करके मर दृस्तगत्त किया और उसके अगले ३र्ष…ड्सन् ११३९ ई० मैं जयपुरकै राजाव्रदृदृ स्मयँम्भीरंकिंम्नदृ ले हिया। द्दसौसाहा उसने 'ब्लैणासिक्यों शब वसाया । खन्१८1७२ई० सकू क्योंग्रं-फरीवं. सभी राजपूत राजा शूड्डाहे आधीन हो गये थे । ५ '

ज्ञानकोश ( अ ) ४

दृर्पिदृर्दर

( सन् ११७२ रै") के सिनंया' मदीनेपै अकयाने गुजगत्रकौ चड़ादैका काम अपने टायोंपैं लिया है गुजरा": इस समय वहुत ओटे-छोटे मुसलमान राजा राज्य फाते ये : थे यीनणीधधँअनि राज्यके आसपास भी उपद्रव मचाते थे । अमीनक्र जब-जव अकाय' लडाई पा' जानाथा. नय नव उसे इस जानना हमेशा डर बना गन्ता था. कि कहीं उसके पीछे उसके सरदार विद्रोह न करें है पनंन्तु इस नद्वाईकै समय यह बिलकुल निश्चिन्त था । भुवना ही नहीं जथपुम्पहै भगषानदाग र्यकिं मानसिंह दोनों मजमून सादा" इम सड़रुईवें उसकी ओगवै लड़ गो ये । गुजगगमैं जिन्होंने अक्याम्मे थिरोंपफिषश्व. उनमें महान, महँगा र्थाक्व मूग्नकै गजा मुग्य ये । उन सबका पराजित काके नथा गुजगनके शासन प्रवा-धके सिये आरु- मदश्चान्मैं अपना सूबेदार निब, काके खुन् १८५७३ ईष्ट के जत प्रारिनेमें अकाज' आगपै' खाट आया । उसी मात जय अकानंने गुशगनमैं विद्रोह की गार सुनी तो उसे फि? वहाँ जाना पन्ना । अशासंवैदृ शासनकाल:, म्पारडव धपेके अंनमें हूँ उसके राज्यमें पआय. कात्रुलके माथ वायव्य । मध्य तचूगृपश्चिमी किंदुस्वानका भाग आ चुका , था । कांमें फधेनाशा नदी उसके गज्यफी सीमा श्री । उम नट्टीफे दूसरी आर बंगाल नथा विहार प्रान्त ये। षहाँके अफगान मस्ताने नाममात्रका अलास्का प्रमुख स्वीकार कर लियाथा. पर उसने अक्याकौ कभी कर नहीं दिया। गुजरात की दूसरी चड़ाद्देकै पाएं अशागौ स्वयं पटने पर ' चढाई करके उसे हस्तगत क्रियहुँ । नन्मभात् ५ उसकी सेनाने मुंगेर, भागलपुर गोड़. आदि पर जि अधिकार जमाकर अपमान संवार पाऊदृपा

रारणमै आनेके लिये बाध्य किया । रस प्रकावांभून् १५७१। ईष्ट में कणीय-स्वीय साया बंगाल खार बिहार प्रति मुगलोंहे अधिकार में आ गया है अक्यरके वशमैं न जानेवाला यदि गध्दपुनाने में कोई राजा था, तो वह येवाडका अश्या- प्रतापसिंह था । अफशठंने उसका अधिकांश राज्य अधिकृत क? लिया था, किं भी गणा बंगसौयें रहका: अपने विभ्यासी अनुपाधिओकी सहायतासे प्रकारका टिमोघ करता हीं रदा । उसको पराजित फश्लेके तिथे सत् १धु७६ ई० मैं अकत्ररने मानसिहकै मातहत सेना भेदी । पीछे उसने स्वयं येयाड़मै प्रवेश किया । प्रानसिलूने हूंस वर्षकै दिसम्बर थहाँनेमै ९बरीधप्राकीकी सहाई । म प्रतापसिंह को हराया । यशन्तु इसके बार भी