पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१४३

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अतर ज्ञानकोष (अ) १२६ अतर से ६७२५ टन अर्थात् ४ लाख रुपयोंका कच्चा माल वह फिर पानी हो जाता है और उसके ऊपर तेल विदेश भेजा गया था। सा पदार्थ तैरने लगता है। उसी को युक्तिसे देहली, लाहौर, अमृतसर, लखनऊ, जौनपुर एकत्रित किया जाता है। वही उत्तम अतर कन्नौजमें इत्रका अब भी बहुत व्यापार होता है। कच्चा कहलाता है। माल बम्बईसे बाहरके देशों में भेजा जाता हैं। निम्न- कृति नं०३--जिन फूलों का इत्र बनाना हो लिखित पदार्थोसे बहुधा इत्र अथवा सुगन्धित | | उनको वोतल में भर कर तिल्ली का तेल इतना छोड़े तेल तय्यार किया जाता है। बेलाके फूल,धूप, शिला- कि फूल डूबजावे | उसमें इतना कसा काग लगाना रस. कुलान,इलायची,अगरू,मूगफली,दालचीनी, चाहिये कि हवा भीतर प्रवेश न करसके। उसको संतरे का फूल अथवा छिलका. खटुआ, जूही, महीना सवा महीना धूपमें रखना चाहिये। तदचमेली, जई का फूल; सोनचम्पा,केवड़ा कस्तूरी, नन्तर उसमें नये फूल डालना चाहिये और पुराने जटामासी, पानड़ी, गुलाब, चन्दन, खस, लोबान, निकाल कर फेंक देना चाहिये। इसी क्रियाको नागरमोथा, दौना, मरवा, मौलसरी इत्यादि। चार-पाँच बार करनेसे इत्र तयार हो जाता है। यदि केवल कच्चा माल ही देशसे जाता तो भी | गुलाब जल-गुलाबके फूल और पानी एकमें उतना नुकसान न होता किन्तु वही फिर इत्र तथा मिला कर एक मटके में भर देना चाहिये। उस सतोके रूपमें आकर विकता है जिससे बड़ी पर एक छोटा सा मटका ओंधा करके गीली मट्टी हानि होती है। इन्हीं विदेशी इत्रोंके कारण कन्नौज से दोनोंका मुंह बन्द कर देना चाहिये। उस इत्यादिके बहुतसे कारखाने बन्द होते जा रहे हैं। मटकेमें छेद करके एक उर्ध्वनलिका उसमें इस क्योंकि इन्हींतीब्रसतो(Concentrated essence) भाँति लगा देनी चाहिये कि भाप बाहर विल्कुल से सुगन्धित तेल बनाने की प्रथा बहुत बढ़ गई है न निकल सके। अर्थात् उस छेद पर गीली मट्टी क्योंकि इसमें सरलता बहुतहोती है और व्ययभी पोत देनी चाहिये । नलीका मध्यभाग या तो शीतल कम पड़ता है। यद्यपि ये मिश्रण नियम पूर्वक जलमें डूबा रहना चाहिये या खूब गीला कपड़ा बनाये हुए असली तेलके मुकाबलेमें कुछभी लाभ- | | उस पर लपेटा रहना चाहिये। तब नलीके मह कारी नहीं होते, न उनकी सुगन्ध ही स्थायी होती पर कोई बर्तन रख कर उस मटकेके नीचे भाग है तौभी खपत उन्हीं सतोद्वारा बनाये हुए तेलोकी सुलगा देनी चाहिये। अन्दरके जलकी भाप ही बहुत अधिक होती है। जर्मनसे, जिस समय जव ठण्डके सहवाससे फिर पानी होकर दूसरे युरोपीय महासमर श्रारम्भ हुआ था, उस समय बर्तन में एकत्रित होगी तो वह अत्यन्त सुगंधियुक्त इन विलयती सतो का आना बन्द होगया था जिस | गुलाब जल हो जावेगा । से एक बेर कन्नौज इत्यादिके कारखाने फिरसे | कृति नं० २-~ोटोडी रोज-॥ ड्राम,मग्नेशिया चालू होगये हैं। कन्नौज, जौनपुर तथा गाजीपुर | १ औंस, नवितजल ( Distilled Water ) -11अपने सुगन्धित तेल तथा तरके लिये सारे गैलन । पहले ओटो डी रोज और मग्नेशियाको भारतवर्षमें प्रसिद्ध हैं । देशी रीतियाँ तेल बनाने मिला लेना चाहिये । तदनन्तर पानी में उसे घोल की बड़ी ही सुगम है किन्तु भद्दी होनेके कारण कर ब्लाटिङ्ग-पेपर (सोख्ते ) से उसे छान कर विदेशी मालोके सामने नष्टप्राय होती जारही हैं। व्यवहार में लाना चाहिये। कृति नं०१-सफेद तिल भली भाँति धोकर अर्क संतरा-(ऑरेज वाटर ) निरोली तेल सुखा लेना चाहिये। थोड़ी पिन्नी का हाथ लगाकर ३० बंद और २ ड्राम मग्नेशिया तीन पाव स्त्रवित जिस वस्तुका तेल निकालना हो उसकी एक परत जलमें डाल कर छान लेना चाहिये। बिछाकर उसपरएक परत तिल बिछा देना चाहिये। कोलन वाटर बनानेकी कृति-निरोलीके तेलकी इसी भांति एक परत तिल और एक परत मुख्य | २५ बंद, एसन्स आफ सिदरेट २५ बूंद. एसंस वस्तु की देते रहना चाहिये। फिर उसको ढककर श्राफ लेमन २५ बंद, एसन्स आफ वर्गमोर २५ १२ से १८ धण्टे तक रखदेना चाहिये। तदनन्तर बँद, एसन्स आफ रोजवेरी औंस, पसन्स आफ कोल्हूसे तेल निकाल लेना चाहिये। पुर्तगाल निरोली३ औंस पदार्थोंको एक गैलन कृति नं०२-अतर बनाने वाले गन्धी एक बड़े अल्कहलमें भली भाँति मिला कर एक बोतल में हण्डे में पानी भर कर उसमें फूल भरते हैं। उसके मिला कर अाठ दिन रखना चाहिये। नीचे भट्टी जलाकर उसकी भाप उर्ध्व नलिका लेवेण्डर वाटर बनानेकी कृति-उत्तम लेवेण्डर यन्त्रसे बाहर दूसरे बर्तनमें एकत्रित करते हैं। तेल २ ड्राम, लौंगका तेल ड्राम, कस्तूरी २॥ मेन,