पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१४५

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डा० जानसन स्टोनी ने विद्युतभारवाही परमाणु को 'विद्युत्कणवाही परमाणु' की नाम संज्ञा दी है और विद्युत्कण को 'द्रव्य रहित विद्युत भार' माना है। ये ही नाम अब भी चालू है। ये विद्युत कण परमाणुओं से बिल्कुल सटे हुए रहते हैं। अत: विद्युत विश्लेषण के समय विभिन्न विद्युन्मार्ग से टकराने के कारण नष्ट हो जाते हैं। विद्युत् भार के कारण ही परमाणु विद्युन्मार्ग की ओर अग्रसर होते हैं अथवा यों भी कह सकते हैं कि विद्युत भार परमाणु के साथ जाता है। विद्युत्विश्लेषण के समय विद्युन्मार्ग के कारण विद्युत् भार का नाश हो जाता है और केवल द्रव्य परमाणु ही रह जाता है। यह भार एक परमाणु एक गुणा दो पर दो गुना इसी भॉति बढ़ता जाता है। इससे यह विदित होता है परमाणु के साथ इसका संबंध निशचित ही होता है। अत: इस परमाणु के विद्युन्मान को विद्युत् परमाणु कहने में कोई भी आपतति नहीं रह जाती। (२)अति परमाणु विद्युत्कणों की कल्पना-(अ) वातरहित नली के भीतर का दृश्य-यदि विद्युत् मंडल में एक वातरहित नली छोड़ दी जाय और एक मामूली छोड़ी जाय तो विद्युत् प्रवाह उसी खुली जगह से न जाकर उस वातरहित नली से जाना ही पसंद करेंगे। जब वातरहित नली से विद्युत् प्रभाव गुजरता है तो उस नली में चमकता हुआ प्रकाश दिखाई देता है। ज्यों-ज्यों उस वात्रहित प्रदेश का विस्तार बढ़याा जाय वैसे ही वैसे इसे चककते हुए प्रकाश रंग में भी भेद होते जाता है। अंत में उस नली के सिरे पर एक पुरा पट्टा दिखाई देता है। यदि वातरहित प्रदेश बहुत अधिक बढ़याा जाय तो उस पूरे पट्टे के बदले विभिन्न टुकड़े-टुकडे़ देख पड़ेंगे, और ॠण (Negative) ध्रुव के समीप एक काला भाग देख पड़ेगा। इसके पूर्व की यह काला भाग नली से व्याप्त हो ॠण धुव से दूसरा ही तेज युक्त भाग निकल पड़ता है। किन्तु यह क्रिया होते समय यदि वातरहित भाग बढ़तो जाया करे तो अन्त में तेज युक्त भाग नष्ट हो जाते हैं और नली में एक अदृश्य प्रवाह शुरू हो जाता है। ऐसी अवस्था में विद्युन्मंडल की जगह बढ़नाी पड़ती है नहीं तो यह प्रवाह वातरहित नली से न जाकर खाली जगह से जाने लगता है। अस्तु, इस भॉति जो अदृश्य प्रवाह आरंभ होता है उसी को ॠण धुव किरण कहते है। (आ) ॠणधुव किरण-वातरहित नली में अदृश्य प्रवाह शुरू होने पर प्रकाश या दृश्य भाग का तो कोई प्रश्न हीं नही रह जाता क्योंकि ॠणध्रुव से एक पदार्थ अत्यंत वेग से निकलता रहता है और उस तक यह अदृश्य रहता है जबतक यह किसी भॉति रोका नहीं जाता, अर्थात् इसी की गति में रूकावट डालने पर यह देख पड़ने लगता है इसमें संदेह नहीं कि यह प्रदेश कृष्णकिरणों द्वारा व्याप्त होने से कृष्ण हीं होता है। किन्तु उसकी सीमा प्रकाश युक्त होती है क्योंकि उस जगह इन किरणों को रूकावट होती है। अन्य दशा में इनकी गति बिल्कुल सीधी होती है और आपस यह एक-दूसरे से बिल्कुल नहीं टकराते। यह सिद्ध करना बिल्कुल कठिन नहीं है कि इन कृष्णकिरणों में भी शक्ति है। यदि इन किरणों को केन्द्रीभूत करके उसके समीप प्लेटीनम का टुकड़ा रखा जाय तो वह खूब गर्म हो जायगा। अत: यह स्पष्ट है कि इन कृष्णकिरणों में भी शक्ति अवश्य है। वातरहित प्रदेश ज्यों-ज्यों बढ़याा जाएगा त्यों-त्यों प्लेटीनम भी कम गर्म हुआ करेगा। पूर्ण वातरहित अवकाश के समय यद्यपि कोई दृश्य प्रकाश नहीं निकलता तो भी एक प्रकार की अत्यंत शक्तिशाली किरण निकलने लगती है। उसे क्ष-किरण कहते है। प्रक्षिप्त पदार्थ यदि एकाएक रोक लिया जाय तो उसमें से क्ष-किरण का विसर्जन होने लगता है। यह गुण चरविद्युत्भार में ही होता है और यह तभी होता है जब उसकी और प्रकाश की गति समान ही हो। इन ॠणधुव किरणों की भेदन शक्ति विलक्षण होती है। यह एक धातु की चादर को छेद कर निकल जाते हैं और बाद में वायु के संघर्ष से तेजमय हो जाते हैं। यह दृश्य देखकर कुछ की धारणा यह हुई कि ये विद्युत्भारयुक्त पदार्थ परमाणु हैं लेकिन पदार्थ के परमाणु बिना किसी आघात के एक इंच का सहस्त्र भाग भी चल नहीं सकते। कुछ काल तक लोगों की यह कल्पना थी कि ॠणधुव किरणें गतियुक्त हैं और इनकी गति तथा साधारण अणुओं की गति समान ही है। अन्तर केवल इतना ही है कि उनका मार्ग सादे वायु पदार्थों के मार्ग से अधिक विस्तृत है। उसी भॉति ये चलते भी समान रेखान्तरों में हैं और उनकी गति उष्णतांशु विक्षेपण की भॉति अनियमित भी नहीं होती। इसका कारण यह है कि उनको खुला मार्ग बहुत विस्तृत मिलता है। क्रूक नामक विज्ञानवेत्ता का मत है कि पदार्थ को जैसे तीन