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अकबर ज्ञानकोश

( अ ) 'पू

किनने सी वर्षों नक मुश-नाज-शल-सेन रार्णद्दे- 2

प्रतापसिंह्रका पीछा काली रही । किन्तु प्रभाष- मिएवै अंत्तनक मुगतसेनाकी दस्ता गलने न दी ।

( प्रनापसिंह देखिये ) सन् १७७७ ई० में जहैंरेसामैं ५ सन ११७७ 3

दाज्जसांका विद्रोह दग्राथा गया । और सद ९१७८ रै० मैं अकारने अपना साग समय मेवाड़, बुरहानपुर तथा गुजरानकी राज्य- व्यायवश्यहँ सुधारनेमे ही व्यनीत किया। सन् १५८१ ई० की भहन्यमूर्ण षात्त यह है कि इस साल जहिंयाकरमाफ कर दिया गया नथा राज्यके एक भागसे दूसरे भागमै जानेवाले माल पर तो का लिया जाता था. यह भी उठा दिया गया ।

अकषरफी इच्छा थी कि मेग राज्य चिरस्थाई नगा प्रजाके लिये सुखकर हो है इस कागज यह पहसेसे ही राजपूनोंर्का अपनी ओर मिलाने का प्रयन्न का ता रहा है यह सबके साथ सामान वर्ताव

करना था । किसीका किसी प्रकाशक, कष्ट नहीं ,

पहुँचने देना था। धार्मिक प्रामलोंमैं किसी पर जुल्म नहीं फस्ता था । उसने इसी नीतिसे चल- कम ओर साथ प्रेमका व्यवहार करके तमाम टिन्दुस्नानर्का अपने अधिकारों, करनेका निश्चय कर लिया था। ज्ञडिथा ८८ की नन्द हिन्दूयाधियोंको एक प्रक्रारफा कर लेना पड़ना था, वह भी बन्द कर दिया गया । राजपर्णसे ( जयपुर, जोधपुर राथा बीकानेर: घराने ) विवाह संबध स्थापित काऊँ तथा उन्हें सेना-बिभागर्में ग्रड़े-च्चे स्थान देकर उसने उन्हें अपना लिया । उसने व बातिर्योंके र्णागोंकौ अपने रत्स्यमें नौकरियां ही ।

सन् १प८२ ई० में अफबरके भाई हकीमनेदृ जो कायुरूमैं राज्य क्या।। था. पंजाब पर चढाई कब ही । अशारने हकीम पर चढाई करके खुद कापुव्रमें उसे पराजित किया । फिर भी उसने णाबुतु प्रान्त उसीके अधिकारमैं रहबे दिया । हफीमकौ मृत्युकै षम्बात् सन १०1८गृरै०मैअफ- षरने कुछ दिनेंपुकै जिये क्रायुत्तका शासनप्रर्वध मानसिंह को सोपा था : परन्तु यहाँ की बजाने अफएरसे निवेदन किया फि क्ष्मलोगोंको राजपूत सूपैदार नहीं चाहिए । इसपर अकनरने उसी समय वहाँ पक मुसलमान त्पैदार नियुक्त करके मश्चसिंएषदें। वंगालका ९३३1१ धनाया ( सन्स्पम्भ ई० ) है क्षन् १धुद्वा४ ई० में अ-ने र्यगासमैं ज्ञाति स्थापित की तथा गुजरात का विद्रोह क्याफर भी सदाकै सिये अपने रत्स्यये शिखा सिथा ।

खन १न्द्र८४ से १७1९८ तक ना र अकबर की । राजधानी थी । अकारकों अपने भाई एफीमफी । मृत्युफी खबर अपने शासन-फाहाके ३९ वै वर्ष के आरंभमें भिती । उसी समय उसने यह भीड कि उड़पेबोंने सौमामाप्त-त्रव्रप्लाहँपर आक्रमण ' क्रिया है छोर वे लोगा क्रात्रुतपर भी कंजा करना चाहते हैं । इस कारण वह नधब्दर महींगेवें पंजाब की और रवाना दुआ । उसने अटक पहुँच कर वक सेना काश्मीरर्मे. दूदुररी त्रत्हुँपैर्पोफी शक्ति कम फरनेकें लिये और तीसरी सुधान प्रान्तपै भेजी । दूसरी सेना शोप्रहीं यशशो हुई । परन्तु पहली सेना काक्योंरकै राजा द्वारा अकबर का आधिपत्य स्वीकार कर लेबर हीं संतुष्ट होकर सौद आई । नासगे सेनाकों पीछे अच्छी सहायना थिल जानेके कारण यश मिला किन्तु उसकी गडी दुर्दशा हुई ओर अक्रयम्पा कृपापाप्र सरदार वीर- वल एस लपूदाईमें काम आया है

सन् १५८७ ईख में काश्मीर प्रेबिहोह होनेके फाष्ण थकब्ररकी लेखको वह माँस क्योंक वुसत- मान राज्ञाओसे वापस सैनेवें कठिनाई न पट्टी । ५ ,सत् १४८८ एँ० में अफचरमे सिधप्रान्त आहें राज्यमै मिला लिपा । किन्तु रेसा प्रतीत होता हैं किं अकबर सन् ११९२ ई० तक उस र्माशपयट्वें रूपसे अधिकार नहीं कर सका था । सन् १धु९० ० में गुजरातकै सूबेदार: ने काटिपावाद्र तथा कच्छा ' प्रान्त श्रझदशाहकै राज्यमैं बिताये भोर सूपैदार नानसिंएने ड्डीसत्मान्त पूर्ण रूपसे मुगद्वाशस्त्रनफे अधीन किया । सन्द्र१४जि ई० में उसने र्फन्हार पर अधिकार कर लिया ।

अदृमदश्याद राज्यमे अशान्ति देखकर अकबर मे अपनी लेना उधरर्ट्सभेजी । वहाँ दक्षिणी तथा परदेशी नुम्नलमानोंके वीनजू झगडा त्रड़गण था । चाभी ओर शरएँश्र्वड़जाफेली हुई थी । अह- मन्नगा: की सेना माँदपीदीकै अधिकार., थी । उसने वडी घास्ताके साथ युव्रकर मुगलों को नीचा दिखाया । फिर भी अन्तमै उसे संधि करनी पकी । नुयासीकों बरार प्रान्त देनेका नाडा विया गया ( सर १४९६ रै० ); परन्तु कथनानुसार उक्त- प्रान्त युगलोंके हाथमे न अनिकै कारण फिरते युद्ध आरम्भ ही गया । स्वयं अकबर: सन् १५९९ई० में नर्मदा पार करके दशिणकी ओर गया । एतबे- ही मैं ( नुत्ताई सन् १६०० ई० मैं ) चंदिगीगीकां राजूब हो गया और अएमकानरकों त्रुएग़सन-ग्यवस्वा पिशकुरू पिगड़ ग्रवंट्टे । निशत्मशाहीका कोई भी रक्षक न रहा । इस कारण खन् १६०० ई० मैं अह-