पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अति परमाणु विद्युत्कण ज्ञानकोश ( अ ) १४० अति परमाणु विद्युत्कण वहनके समय जो क्रिया होती है कदाचित् उसी विक्षेपणका यही कारण हो तो उस पर लोह- क्रियाके अनुसार ये विद्यत्कण एक परमाणुसे चुम्बकका परिणाम होना चाहिये, क्यों कि घूमता दूसरे परमाणुके आधीन रबखे जाते होंगे। हुश्रा विद्युद्भार अर्थात् वर्तुलगति ही विद्युत्प्रवाह विद्युद्वहन निम्नलिखित तीन प्रकार के हो सकते हैं- है। विद्युत्कण चाहे जिस दिशामें घूमता हो, (१) पक्षी जिस प्रकार दाना चोच में उठा कर यदि उसके चारों तरफ बढ़ती हुई शक्तिका क्षेत्र अपने घोसलेमें लाकर रखता है उसी प्रकारसे उत्पन्न किया जाय तो किसीकी गति बढ़ेगी और विद्युत्का एक जगहसे उठा कर दूसरी जगह पर किसीकी कम होगी। यह क्रिया उस क्षेत्रके नष्ट लाकर रक्खा जाना। (२) विरल वायु द्रव्यों होने तक चलेगी। इससे यह स्पष्ट है कि यदि में ऋण-ध्रुव किरणसे बन्दूककी गोली जिस प्रकार किरण-विक्षेपक-पदार्थका समावेश लोह चुम्बकीय निकलती है उसी प्रकारसे इसका भी होना, क्षेत्र में करें और उसमें की विच्छिन्न-किरणपट की अथवा (३) परमाणु स्वयं बहुत दूर तक नहीं रेखाओंको देखें तो उनसे कुछ चौड़े दिखाई पड़ेगे हिल ता किन्तु एक तरफ विद्युत् लेनेके थोड़ी दूर और कुछ स्थान परिवर्तित किये हुए देख पड़ेगे । तक और दूसरी ओर विद्युत् देनेके लिये थोड़ी किसी में कुछदूसरा ही अन्तर देख पड़ेगा। लॉरमूर दूर तक हिलता है । जिस प्रकार बहुतसे आदमियों ने इस प्रकार की कल्पना की थी किन्तु प्रयोग को एक पंक्तिमें खड़ा करके हाथो हाथ कोई वस्तु द्वारा वह उसे सिद्ध न कर सका। उसके बाद थोड़ी दूर तक इधर उधर ले जायी जा सकती है १८६७ ई० मे जीमनने एक अच्छा अपभवन उसी भाँति उपरोक्त बात भी होती है । विद्युदोधक जाल ( Diffraction Grating ) और लोह द्रव्योमेसे विद्यद्वहन जबर्दस्ती हुश्रा करता है और चुम्बक लेकर बड़ी सावधानतासे देखा था कि ये अन्य धातुओंमें से वह सहज रीतिसे हुआ करता | रेखायें चौड़ी होती हैं । इस प्रकार आरम्भमें ही है। जब तक विद्युत् प्रवाह बहुत नहीं होता तब स्वभावतइ. स विषय को बड़ा महव प्राप्त हुआ, तक धातु वेश करने के लिये बाहरी शक्तिका कुछ और फिर यह देखा गया कि भिन्न भिन्न पदार्थोमेसे प्रभाव नहीं होता। जब तक विद्युत्कणोंकी शक्ति निकली हुई किरणोंके विच्छिन्नपटमे की प्रत्येक उष्णता पर अवलम्बित रहती है तब तक धातुके रेखामें लोहचुम्बकके कारण क्या अन्तर होता है। विद्युत्कण स्वतन्त्र रहते हैं। लोहचुम्बकके कारण कुछ रेखायें दुगनी, कुछ - जव वायुरूपमें से ऋणविद्युत्कण अलग होते चौगुनी और कुछ छःगुनी हो जाती है, इससे यह हैं तब बहुत शीघ्रतासे दौड़ने लगते हैं किन्तु धन | सिद्ध होता है कि लोहचुम्बकका परिणाम कम नहीं विद्युत्कण अथवा विद्युदणुकावेग इतना नहीं होता। होता है किन्तु अत्यन्त तीव्र तथा शक्तिशाली होता द्रव्यरूप पदार्थमें किसी भी प्रकार के विद्युत्कण है। किन्तु उसे देखनेके लिये उच्चकोटिके यन्त्र की स्वतन्त्र रूपसे नहीं मिलते । उनका सम्बन्ध आवश्यकता होती है। यदि विद्युत्करणाके कारण परमाणुसे तत्काल ही हो जाता है। तदन्तर वे किरण-विक्षेपण होतो उनकी गति का विरोधक- विद्यदणुके रूपमै रहने लगते हैं किन्तु उनका वेग द्रव्य पिण्ड उसके साथ बहुत ही थोड़ा होना कम रहता है। चाहिये । इतना ही नहीं किन्तु विच्छिन्न किरण- घनरूप पदार्थों में से किसीमें ऋणका भाग पटों की रेखाओंके अनुमानसे यह भी जाना जा तथा किसीमें घनका भाग अधिक रहता है। सकता है, कि भिन्न भिन्न विद्युत्कणोंके साथ द्रव्य (व) किरण विक्षेपण-परमाणुओके चारो ओर भाग कितना है। अथवा दूसरे शब्दों में यो कहा जिस प्रकारसे विद्यत्करण घूमते होगे उसी प्रकार जासकता है कि इससे यह भी पता लग सकता है पर किरण विक्षेपणकी शक्ति भी अवलस्वित है। कि किरण-विक्षेपणोपयोगी विद्युद्रासायनिक- यदि विशुद्ध द्रव्य ग्रहण किया जाय तो उसका सममूल्य कितना है। प्रोफेसर जीमन ने सिंधू सम्बन्ध इध ( Ether ) से नहीं होता। यदि (Scdium ) की रेखाओं में होने वाले अन्तर उसका सम्बन्ध इनसे देख पड़े तो समझना से यह पता लगाया था कि विद्युत्सममूल्यका चाहिये कि विद्यत्भारके कारण ही है। इधों मूल्य १० से प्रा. प है। और ठीक यही मूल्य यदि चञ्चलता देख पड़े तो इसका कारण विद्य विद्युत्भार और पिण्डके प्रमाण का भी है। दुगति-वर्धन ही है। विच्छिन्न किरण-पटोंमें की यही अाधुनिक प्रयोगोंसे भी निश्चित हुआ है। भिन्न भिन्न रेखाये गतिके भिन्न भिन्न कम्पनकी ऋणध्रुव किरणों में जो कुछ कण गिरते हैं उनका संख्या पर अवलम्बित रहती हैं। यदि किरण आन्दोलन किरण-विक्षेपके उद्गम स्थान में होता