पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१५५

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अति परमाणु विद्युत्कण ज्ञानकोश (अ) १४१ अति परमाणु विद्युत्कण- है और ऋणध्र व किरणें यदिघूमनेवाले विद्युत्कणों २०००० मील होता है और एक प्रतिशतके हिसाब से बनी हुई हो तो यह कहा जा सकता है किरण से वृद्धि होती है। बल्कि अब इसकी अपेक्षा भी विक्षेपण इन घूमने वाले विद्युत्कणों ही कहीं कहीं जो अधिक वेग है वह विद्युत्किरण से होता है। यदि जीमन का प्रयोग बहुत बारीकी विसर्जक ( Radio active) पदार्थ की ओरसे से कियाजाय तो जीमन, लॉरेन्टज़ फिटज़ीरल्ड फेके हुए विद्युत्कणोंका अथवा परमाणुओका होता और लॉरमूर वगैरहने जो यह कहा है कि किरण- है। अतः यह भी अव महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है विक्षेपण विद्युत्कणसेही होता है ठीकही है। यद्यपि कि इस तरहकी किरणोंका जड़त्व क्या होना यह अभीतक पूर्णरूपसे सिद्ध नहीं हुआ है तो भी चाहिये। बहुत कुछ समाधानकारक रीतिसे सिद्ध होता है। (१३)जड़त्व के विद्युत्सिद्धान्तका समर्थन-जिस कण लारेन्टज़के सिद्धान्तके अनुरोधसे तथा जीमन से इस जड़ताकी गिनती और तौल होती है वह की खोजसे परमाणुओके गुण-धर्म दिखाने के कण मूलमें ही केवल-विद्युन्मय है और उसके विषयमें और विक्षेपणकी पद्धतिपर प्रकाश डालने मध्यविन्दु में भी दूसरा द्रव्य नहीं है। बिना इस के लिये विच्छिन्नकिरण के वर्गीकरण पद्धतिमें बातके सिद्ध हुए यह कैसे सिद्ध हो सकता है कि बहुत कुछ सहायता प्राप्त हुई है। इसी योगले ग्रह जड़त्व अथवा जड़त्व-वर्धन विद्युन्मूलक है। उप- और उपग्रह के बदलेमें परमाणु और विद्य त्कण रोक्त कथनको सिद्ध करने के लिये थामसनने इस वाला एक भिन्नही भौतिक ज्योतिषज्ञान उत्पन्न वातका विचार किया था कि किरण-विक्षेपणका हो गया है। । उष्णता-उत्पादनसे क्या सम्बन्ध है । यह तो ऊपर शीघगतिके योगसे जड़त्व की वृद्धिः-सर्वदा यही सिद्ध हो ही चुका है कि जो किरण-विक्षेपण होता समझा जाता रहा है कि जड़त्व वरावर निश्चित है वह उस कण के विद्युत्मार्गके कारणही होता है रहता है। इसका और गतिका कुछ सम्बन्ध नहीं और इतर द्रव्यों के कारण उदणला उत्पन्न होती है। है। जिस समय कोई पिंड शीघ्र वेगसे घूमता है इस प्रयोगले भी उपरोक्त कथन पूर्णरूपसे तो उस समय जाने वाली शक्ति रेखाये जिस तरह सिद्ध होता नहीं है। अतः इसके बाद काफमॅनने उसके पृष्ट भागपर बँटी रहती है यदि इसमें किसी अन्य रीतिका अवलम्बन लिया। उसने विद्युत् प्रकार का परिवर्तन कियाजाय तो उन रेखाओंके तथा विद्युच्छुम्बकीय शक्तिके क्षेपमें एक ही समय जड़त्वमे लम्बपोर्श्व गतिसे अन्तर पड़ सकता है। में एकही प्रकारकी किरणें मिलाकर और उन और इसी लिये यह सम्भव है कि विद्य जड़त्व शक्ति रेखाओंको एक ही दिशासे छोड़कर यह पता वेगपर अवलम्बित होगा। यह बात यन्त्र शास्त्रमें लगाया कि प्रत्येक शक्तिकी सहायतासे वे रेखाये अधिक ज्ञात न थी। जिस समय कोई विद्य द्धार कैसे घूमती हैं। इसी प्रयोगसे उसने यह भी पता घूमने लगता है उससमय वह अपने चारों तरफ | लगाया कि जब इन किरणोंका वेग प्रकाश-वेगके वतु लाकार लोह चुम्बकीय रेखायें उपत्न करता लगभग बराबर पहुँचता है तव विद्युत्भारका है। और चूंकि यह रेखायें भी पिण्डकेही वेग मूल्य जड़त्वके विद्युत्सिद्धान्तके योगसे जितना से घूमती हैं इसलिये उनसे अन्य स्थिर विद्युत् बढ़ना चाहिये उसी मानमें बढ़ता है। यह सिद्धांत रेखायें भी उत्पन्न होती है। दूसरे प्रकार की जड़त्ववर्धन विद्युत्के कारण ही है। दूसरा रेखाओका परिणाम साधारण वेगके समयही नहीं कारण इसका कुछ भी नहीं हे। काकनके उप- किन्तु बड़े वेग के समय भी बहुत नहीं दिखाई रोक्त प्रयोगसे जिस समय उस कणका वेग प्रकाश पड़ता। किन्तु यह वेग जिस समय प्रकाश वेग की के बंगके बराबर होता है उस समय विदयुत के समता को प्राप्त होता है केवल उस समय उसका सिवाय किसी भी अन्य प्रकारके द्रव्यसे होनेवाले परिणाम होता है। प्रकाश प्राप्त-वेग के सदृश जड़त्वके लिये स्थान ही शेष नहीं रहता। इसका वेग होनेपर जड़त्व बिल्कुल अन्तिम सीमा काफमॅनके गिने हुए विद्युत्कणका अधिकसे को प्राप्त होता है किन्तु इसके लिये यह विद्यद्भार अधिक बेग २.३६, २४८, २६, २७२, २५x बिलकुल पतले बिन्दु के बराबर होना चाहिये। १०१० सेन्टीमीटर और प्रकाशका वेग २०४ .. अब तक प्रकाशके समान वेगवाला अन्य काई १०१० सेन्टीमीटर है। अतः उपरोक्त दोनों पदार्थ अस्तित्व में नहीं था और इसीलिये जड़ गतियोंके अनुसार प्रकाशको १ मान लेने पर वर्धन का प्रश्न कम महत्वका था। ऋण-भ्र वसे विद्युत्कणका ७८७, १७, ६३, ६०७ तथा '६५ निकलने वाले कणोंका धेग प्रत्येक लेकण्डमें होगा। जब गति प्रमाण कुछ भी नहीं रहता,