पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१५७

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कल्पना को भी अधुरी ही छोड्नी पडूूूती है। य्द्यपि विद्युत्कराकी रचना का विषय छोड् भी दिया जाये तो भी इस हष्टि से कुछ गुरग धर्मो क स्पष्टिकर्ग करना आवश्यक है कि द्रव्य विद्युत्मय है।

    सेस्क्तिस्वरूप nature of cohension- तीसरी कल्पना को श्रनुसार यह माना जाता है कि विद्युत्करग एक नियमित श्राकारमे मिले हुए है। स्फटिक शाखाके श्रध्ययन्से यह मलूम होगा कि उनके कौन कौनसे श्राकार होते है।
    रासायनिक श्राकर्षरग- वास्तविक रासायनिक श्राकर्षण दो परमाणुष्रो मे होता है। इस पर्माणु मे किसी जातिका एक या एक्की अपेक्षा अधिक अनियमित विद्युत्कर्ग होते है। किसि पर्मणुओ मे ऋणविद्युकण अधिक होते है तो किसी मे धनविद्युत्करण अधिक होते है। यदि एसे दो परमाणुओ का सनिध्य हो तो उनकी कभी यो अधिकता पूरी हो जाती है और एक(neutral) तटस्थ अणु तैयार  होते है। किन्तु यह सन्योग चिरस्थायी नही होता क्योकि जहा यह सन्योग होता है वही से छूट जाता है। केवल(organic) कार्वनिक रसायनशास्र मे रसायनोको चाहे जिस भाति भिन्न भिन्न प्रकार से पृथक करने की पद्धतिया प्रचलित है। धर्पण के योग से इन अणुश्रो का विद्युत्सम्मार कम या अधिक होता है। इस भाति अस्थिर होने पर फिर स्थिर होने के लिये वे अपनी भीतरी बनवट मे परिवर्तन करते है। यह परिवर्तन होते समय आवश्यकतानुसार वे विद्युत्कर्णो को बाहर फेक देते है। इसी करण से किरण विसर्जन(radio-activity) का हश्य दर्श्नीय होता है।
     अणु शक्ति(molecular force) रासायनिक सन्सत्ति को छोड कर अणु सन्सक्ति का कुछ अन्श होता है। इस अणु सन्सक्ति का जोर एसे ही परमाणु पर चलता है जिस पर विद्युत्भर अथवा विद्युत्द्णु नही होते। विद्युत्कण के सुव्यवस्थित रीतिसे रह्ते समय परमाणु पर आ जाय तो दो परमाणु जुड जाते है। यही कारण है कि इस प्रकार की सन्लग्न्ता हढ नही होती और साधारण अन्तर पर आ जय तो दो पर्माणु जुड जाते है। यही कारण है कि इस प्रकार की सन्लग्नता हढ नही होती और साधारण अन्तर पर इस श्रकर्षण की कुछ भी शक्ति नही होती किन्तु परमाणु ज्यो ज्यो निकट पहुचते है त्यो त्यो यह आकर्षण अधिक होता है। मलूम होता है कि यह क्रिया विद्युचक्ति के कारण होती होगी। किन्तु इस प्रकार सन्सक्ति उन्ही अणुओ मे होती है जो रासायनिक हष्टि से सन्व्रित होते है। यह सन्सक्ति अन्तर मे स्थित धन्विद्युत्कर्णो की एक दूसरे पर किया और प्रति क्रिया के कारण होति है। अथवा यो कह सकते है कि यह कर्य अविशिष्ट स्नेहाकर्षण से होता है।