पृष्ठ:Gyan Kosh vol 1.pdf/१५८

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अति परमाणु विद्युत्कण ज्ञानकोश (अ) १४४ अति परमाणु विद्युत्करण एक स्वतन्त्र शक्तिके रूपमें व्यवहार नहीं होता, जिस कारणसे विद्युत्कण कक्ष भ्रमण करते हैं, केवल जलरूपसे ही होता है। यही नियम उप- | उसी कारणसे उन पदार्थों की तरफसे भी विक्षेपण रोक्त परमाणु पिण्डका भी है। इस जलमें ज्यों क्यों नहीं होता. जिन पदार्थोके परमाणुका वजन ज्यो प्राणके अधिक परमाणुओं समावेश होता है | थोड़ा है। इसका उत्तर इन प्रकार दिया जा त्यो त्यो इस पर परमाणु के चारों ओर अधिका- सकता है कि इन पदार्थों में विसर्जक अलग धिक विद्युत्कण घुमते हैं। ऐसी अवस्थामें पर- अलग नहीं होता, और पृष्ट भाग पर का विसर्जन माणुरोको एकत्र करके पकड़नेके लिये शक्ति उनके योगसे होता है जो भीतरकी ओर रहते हैं। रेखायें भीतरकी ओरसे जाती हैं. बाहरकी ओरसे ये विसर्जक संख्या भी अधिक रहते हैं, और नहीं जाती। इसी कारण किसी निकटस्थ दूसरे यदि एकसे अधिक विसर्जक हो तो उनके व्यक्तिशः परमाणुओं पर उसका परिणाम नहीं होता। इसके विसर्जनसे अन्यान्य विसर्जनका नाश होता है। भार रहित होनेके लिये और इसी प्रकार प्रत्यक्ष और इसी कोरण बाह्य परिणाम कुछ भी नहीं विश्लेषणके सिवाय उनके पृथक्करणके लिये और | दिखाई पड़ सकता। कोई मार्ग ही नहीं रह जाता। यदि वास्तविक दृष्टिसे देखा जाय तो उष्णता (१६ ) किरण विसर्जन-प्रत्येक पदार्थके | मान कम होने के कारण पदार्थों से किरण विसर्जन परमाणुके चारों तरफ विद्युत्कण रहते हैं होता है। और यदि शक्तिक्षय न होती हो तो और वे उसके कक्षमें भ्रमण करते हैं। यदि यही | उसका कारण आयात और निर्यात् अथवा ग्रहण -बात है तो प्रश्न उठता है कि क्या वे निरन्तर और विसर्जनका समान होना ही कह सकते हैं । किरण विक्षेप किया करते हैं, क्योकि घूमने वाले यह बात नहीं है कि विसर्जन रुक जाता है । यदि विद्युत्भार एक प्रकारके विसर्जक हैं। और कम यह देखना हो कि इस प्रकारसे कितना विसर्जन या अधिक प्रमाणमें विसर्जन भी किया करते हैं। होता है तो जिस पदार्थके विसर्जन का हिसाब इस कारणसे उनकी गति-शक्ति नष्ट होती है और जानना हो उस पदार्थको शुन्यांश उष्णताकी जगह अन्तमें वे शान्त हो जाते हैं। अथवा उनका परि- रखना चाहिये क्योंकि उस जगह वह किसी प्रकार वर्तन दूसरे रूपमें हो जाता है। आधुनिक प्रयोग की शक्ति ग्रहण न कर सकेगा। जो कुछ भी होगा करने वालोको कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे वह सब विसर्जन ही द्वारा होगा। केवल उपरोक्त रीतिसे क्रिया होनेवा का विसर्जन यदि अन्तः शक्ति व्यय करते हुए किरण वि. एकही प्रकारका नहीं बल्कि बहुत प्रकारका सर्जन होता हो तो परमाणु स्थिर न होंगे. बल्कि होता है । क्षणिक और अस्थिर होने लगेंगे, और उनमें अन्त . पहला प्रकार-यह रॉटजेन किरणके समान स्फोटका होना भी स्वाभाविक होगा। सब पर. लहरके रूपमें होती है। इनको 'ग' किरण कहते हैं। माधुओको इस दृष्टिसे एक ही प्रकारका व्यवहार - दूसरा प्रकार-ऋण ध्र व किरणके समान एक करना चाहिये । किरण विसर्जनका विषय बहुत किरण । इसमें प्रत्यक्ष विद्युत्कणही रहते हैं । इन गहन है। इसलिये उसके विस्तृत विवेचन करने को 'व' किरण कहते हैं। .. | का यहाँ विवार नहीं है। .....तीसरा प्रकार-इसमें विद्युत्भार सहित वि- कुछ ऐसे पदार्थों का भी किरण विसर्जन दयुदणु, परमाणु, अथवा अर्ध परमाणु प्रायः सौर होता है, जिनके योगसे विद्युत उत्पन्न होकर -(हेलियम.) वायुके स्वरूपके होते हैं । ये दूर फेक छाया चित्र बनानेके लिये तैयार किये हुए शीशे दिये जाते हैं । इनको 'अ' किरण कहते हैं। पर परिणाम उत्पन्न करती है। बहुतसे पदार्थ - चौथा प्रकार-इन सब विसर्जनोंके अनन्तर विदयुत्कण अवथा विदयुदणुके सदृश कण फेकत विदयुद्भार-रहित अवशिष्ट भागसे गंधकके रूपमें | है। जिस समय यह फेके हुए कण फोटोके प्लेट

निकलता है। . , .

पर गिरते हैं. उस समयके उनके श्राघातके योग जिन पदार्थोंके परमाणुका वजन अधिक होता है से विदयुत् रंग उत्पन्न करते हैं और इस योगसे उनमें उपरोक्त प्रकारके विसर्जन होते हैं। इसका उस शिशेके टुकड़े पर लगाये हुए राजतक्षार पर कारण 'अत्यन्त वेगयुक्त अंतः क्षोभ है । जिससे | परिणाम होता है। ये गुण वरुण (युरेनियम), रॉटजेन किरण निकलती हैं। रद (रेडियम ) इत्यादि उन धातुओंमें ही नहीं 7. श्राघातके कारण होने वाली किरण विसर्जन होते जिनके परमाणु वजनी होते है किन्तु और क्रियाओंको. तो स्वीकार करना ही पड़ेगा, किन्तु सब पदार्थों में होते हैं। अन्तर केवल इतना ही है